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________________ ३३८] महावीर का अन्तस्तल ___ उनने कहा-किसी को मूर्तिक बताना किसी को अमूर्तिक बताना, किसीको चेतन कहना किसी को अचेतन, यह क्या बात है ? क्या तुम इन्हें देखसकते हो ? मैं ( मददुक ) नहीं देखसकता.। वे-फिर मानते क्यों हो? मैं- तुम हवा को देखे विना हवा मानते हो कि नहीं, गंधपरमाणु को देखे बिना गंधपरमाणु मानते हो कि नहीं ? लकड़ी के भीतर आग छिरी रहती है जो दिखती नहीं है फिर भी तुम मानते हो कि नहीं? वे लोग निहत्तर होगये। मैंने मददुक से कहा-ठीक निरुत्तर किया मददुक तुमने। हर एक श्रमण और श्रमणोपासक कों हेतु तर्क के साथ बात करना चाहिये । ऐसी बात नहीं करना चाहिये जिसका सयुक्तिक उत्तर न दिया जासके । तुमने अपनी योग्यता के अनुसार ठीक उत्तर दिया मदुक । ११ अंका ९४६५ इ. सं.. राजगृह में तीसवां वर्षावास विताकर आसपास भ्रमण कर श्रीष्मकाल में फिर राजगृह आया । आज गौतम जव भिक्षा लेकर लौट रहे थे तब कालोदायी ने गौतम को रोककर पञ्चास्ति. काय सम्बन्धी प्रश्न पूछा । गौतम ने अतिसंक्षेप में यस्पट उत्तर दिया। कहा-हम अस्ति को नास्ति नहीं कहते, नास्ति को आस्ति नहीं कहते। तुम लोग स्वयं विचार करो जिससे रहस्य समझ सको। कालोदायी को इससे सन्तोष नहीं हुआ इसलिये गौतम के थोड़ी देर बाद वह मेरे पास आया । और पंचास्तिकाय
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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