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________________ महावीर का अन्तस्तल गौतम की यह विजय वास्तव में बहुत बड़ी विजय है इससे मुझे बहुत सन्तोप हुआ और मैंने गौतम को शावासी दी। ९३-सामायिक पर आक्षेप २४ मम्मेशी ९४३० इ. सं. श्रावस्तीसे पश्चिम तरफ विहार करके शिवराजर्षि को • दीक्षित किया। फिर मोका की तरफ विहार किया और अपना अट्ठाइयां वर्षावास वाणिज्यग्राम में पूर्ण कर विहार करता हुआ राजगृह के गुणशिल चैत्य में ठहरा हूं। यह नगर धर्मतीर्थों का अखाड़ा बना हुआ है। मेरे अनुयायी यहां पर्याप्त हैं पर दूसरों के अनुयायी भी कम नहीं है । खण्डन मण्डन और उपहास चला करता है । आज इन्द्रभूतिने कहा कि आजीवक लोग अपने श्रमणोंसे पूछते हैं कि 'जब एक श्रमणोपासक सामायिक में सब का त्याग कर देता है उसलमय यदि उसका कोई भाण्ड चोरी चलाजाय तो श्रमणोपासक उसे दूड़ेगा या नहीं ? यदि दूड़ेगा तो यह कैसे कहा जासकता है कि सामायिक के समय वह सर्व. संगत्यागी है, आजीवकों के इस प्रश्न का क्या अत्तर दिया जाय ? ' मैं-श्रमणोपासक की क्रियाएँ श्रमणता की शिक्षा के लिये है इसलिए शिक्षाव्रत कही जाती हैं । सामायिक में बैठा हुआ श्रमणोपासक सर्वसंग के परित्याग का अभ्यास करता है, पर श्रमण सरीखा ममत्वहीन हो नहीं जाता है। इसलिए जितनी देर श्रमणोपासक सामायिक करता है उतनी देर शांत रहेगा, हानिलाम का विचार न करेगा, पर सामायिक समाप्त होते ही सुसके सारे सम्बन्ध ज्यों के त्यों चालू होजायंगे। . गौतम को इस स्पष्टीकरण से सन्तोप हुआ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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