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________________ महावीर का अन्तस्तल जिस में श्रेणिक की मृत्यु होगई, उससे कुणिक बहुत बदनाम होगया, इसलिये राजगृह नगर में रहना भी कुणिक के लिये बहुत कठिन होगया था । [३१७ n अस्तु, कुणिक ने मेरा स्वागत किया और बहुत अधिक किया। इस बहाने से भी कुणिक अपने कलंक को कम करना चाहता था । कुणिक के भतीजों ने यहां दीक्षा भी ली । चम्पा से काकन्दी नगरी होते हुए विदेह गया और मिथिला में पच्चीवां वर्षावास किया । इन दिनों वैशाली में कुणिक और चेटक के बीच महाभयंकर युद्ध चलरहा था, जिसमें लाखों आदमी मारे गये थे । फल दिये बिना यह उन्माद शान्त होनेवाला नहीं था इसलिये अंगदेश की तरफ विहार किया । परन्तु फिर लौटा और मिथिला में ही छबीसवां चार्तुमास किया । इसके बाद वैशाली के निकट होकर श्रावस्ती आया । ईशान कोण के इस कोएक चैत्य में फिर ठहरा हूं । आज गौतम भिक्षा के लिये नगर में गये थे। वहां से समाचार लाये हैं कि इस नगर में हालाहला कुम्हारिन की भाण्डशाला में गोशाल सदलवल ठहरा हुआ है और नगर में चर्चा है कि आजकल श्रावस्ती में दो जिन दो सर्वज्ञ या दो afकर ठहरे हुए हैं। लोग गोशालक को भी जिन सर्वज्ञ या तीर्थकर समझते हैं । नियतिवाद की स्वपरवञ्चना में बहुत से लोग फस गये हैं । । गौतम ने मुझ से पूछा कि क्या सचमुच गोशालक तीर्थकर या सर्वज्ञ है ? तब मुझे गोशालक की सारी बातें कहना पड़ीं कि किस तरह यह शिष्य रूप में मेरे साथ रहा, विपत्ति से ऊबकर किस तरह उसने साथ छोड़ा, किस तरह वह अधूरे अनुभवों के आधार
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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