SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 329
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर का अन्तस्तल २९७ ] बाद के अनुसार प्रतिसमय मर ही रहा है, इसलिये उसे भी मरने में कोई आपत्ति न होगी । प्रभाकर देव के लिये मृत्युदण्ड माया ही होगा, और कौलिक को तो शरीर से सम्बन्ध ही क्या है ? जब कि आपका दण्ड शरीर पर ही प्रभाव डालनेवाला है । इस प्रकार दण्ड सुनाकर आप आठ दिन का उन्हें अवसर दीजिये । देखिये फिर आठ दिन में क्या होता है । २३ धामा ९४४९ ई. सं. आज वे चारों पंडित मेरे पास आये थे । उनके साथ राजा के पहिरेदार भी थे । उनसे मालूम हुआ कि उन्हें चार दिन में मृत्युदण्ड दिया जायगा । उन्हें पहिरे के भीतर रहकर अमुक क्षेत्र में आने जाने की और मिलने जुलने की स्वतन्त्रता है। ये मृत्युदण्ड से दुखी थे, और बचने के लिये मेरी शरण में आय थे । मैंने कहा- जब आप लोग अपने अपने सिद्धांत में पक्के हैं, और आपके सिद्धांतों के अनुसार मृत्युदण्ड से कुछ परिवर्तन नहीं होता तब आप लोग मृत्युदण्ड से डरते क्यों हैं ? उनने कहा- भगवन्, हम भूल में हैं । परन्तु समझ में नहीं आता कि हमारी भूल क्या है ? तर्क हमें धोखा देरहा है । मैं- तर्क धोखा नहीं देता, मनुष्य स्वयं अपने को धोखा देता है । लोग तर्क को अपने अहंकार का दास बनाना चाहते हैं इससे धोखा खाते हैं। तर्क का अधूरा उपयोग किया जाता है । इसलिये व्यवहार में आकर वह लँगड़ाकर गिर पड़ता हैं । तर्क कहता है कि सत् का विनाश नहीं होता, इसलिये वस्तु नित्य है । परन्तु जीवन में और मै जो अन्तर है, एक को मृत्यु चाहते हैं, और दूसरे से डरते हैं, इसका भी तो कुछ कारण है । इससे यही मालूम होता है कि वस्तु एक अंश से नित्य है और हम
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy