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________________ महावीर का अन्तरतळ [ २९५ मेरी इस चतुरता का शालिभद्र और धन्य पर काफी प्रभाव पड़ा । धर्म के ऊपर उनकी श्रद्धा और दृढ़ हुई । ८२ - अनेकांत का उपयोग १९ धामा ९४४९ इ. सं.. आज राजा श्रेणिक दर्शनों को आये थे। उनके चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ थीं। जो कि वृद्धावस्था के कारण पढ़ी हुई झुर्रियों से अलग दिखाई दे रही थीं। मैंने जब कारण पूछा तब कहा- मैं पंडितों के मारे परेशान है। इनके वाद विवादों ने राज्य की सारी शान्ति नए करदी है। इनके नित्य अनित्य द्वैत-अद्वैत से जगत का कवं क्या भला होगा कौन जाने, पर आये दिन जो मार-पीट और हत्याएँ होती रहती हैं उससे यह राज्य ही नरक चना जारहा है । मैंने पूछा- आखिर बात क्या है ? . श्रेणिक ने कहा- इस नगर में कुलकर नाम का एक नित्यवादी पंडित है और मृगाक्ष नामका अनित्यवादी पंडित भी है । दोनों के पास शिष्यों की सेनाएँ हैं । एक दिन दोनों सदलवल मार्ग में ही वाद-विवाद करने लगे । कुलकर ने मृगाक्ष की नाक पर इतने जोर से मुक्का मारा कि मृगाक्ष की नाक से खून बहने लगा। मेरे पास न्याय के लिये मामला आया और जब मैंने पूछा तो कुलकर ने कहा- मैंने मारने के लिये नहीं मारा, अपने पक्ष की सचाई बताने के लिये मारा था । क्योंकि मृगाक्ष का कहना था कि नाश होना वस्तुका स्वभाव है, स्वभाव परनिमितक नहीं होता। इसके विरोध में जो मैंने युक्तियाँ दीं वह मृगांक्ष ने मानी नहीं। तब मैंने मुक्का मार कर सिद्ध कर दिया कि और कोई नाश परनिमित्तक मानो या न मानों पर मुक्के से होनेवाला नाश तो परनिमित्तक मानोगे हो ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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