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________________ min २८२] महावीर का अन्तस्तल गौतम ने आश्चर्य से कहा-केवलज्ञान ! केवल ज्ञान होने पर भी कर्मापुत्र घर में रहे ? किसलिये रहे ? मैं-माता पिता की सेवा करने के लिये । कूर्मापुत्र माता पिता की एकमात्र सन्तान थे। उन्हें मालूम हुआ कि अंगर में दीक्षा लेलंगा तो माता पिता का या तो अकाल मरण होजायगा अथवा उनका जीवन असहाय होकर अत्यन्त दुःखपूर्ण होजायगा ! इसलिये जब तक माता पिता जीवित हैं तब तक वे घर में रहे। इस बीच धर्म साधना और उच्च समभाव के कारण वे केवलज्ञानी भी होगये, फिरता तक घर में रहे जर तरु माता पिता का देहांत ल होगया। गौतम-क्या इले मोह नहीं कह सकते भगवनू' मैं-नहीं। मानव जीवन के आवश्यक कर्तव्यों को पूरा करना मोह नहीं है। माता पिता की सेवा के कारण ही बालक जीवित रहता है और मनुष्य बनता है । इस उपकार का बदला चुकाना आवश्यक है। यह पूर्ण निमांह को भी चुकाना चाहिये। में स्वयं मातापिता के लिये कई वर्ष दक्षिा लेने से रुका रहा था। यद्यपि मैं झुम समय केवलज्ञानी नहीं हो सका फिर भी मैं पर्याप्त निर्मोह था। मोह से मनुष्य के हृदय में ऐसा पक्षपात स्वार्थ अविवेक आजाता है कि वह कर्तव्याकर्तव्य का भान भूल जाता है, जो ऐमा भान नहीं भूलता, वह मोही नहीं कहलाता। हमन इतना बड़ा संघ बनाया है, सब प्रेमभाव से विनय से रहते हैं सेवा करते हैं, इसका यह मतलब नहीं कि हम में मोह है। यह सब निर्मोह रहकर करते हैं। इसीप्रकार निर्मोह रहकर जगत के चे सब काम किये जासकते हैं जो सर्वसुख की नीति के अनुकूल हैं। गौतम-जब निर्माह रहकर सब अच्छे कार्य किये जास. को है और केवलझान तक पाया जासकता है. तब साधु साध्वी
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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