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________________ २३ ] भी यही बात है । हां ! लुहार के आक्रमण सम्बन्धी act में बेचारे देवेन्द्र को शास्त्रकारों ने व्यर्थ कष्ट दिया, बिना इन्द्र के भी ऐसी घटनाएँ मजेसे होसकती है । अन्तस्तल में इन्द्र को दिनन्त्रण नहीं दिया गया । ३९ वें प्रकरण में तापसी के जरिये जा जानकारी में म. महावीर को कष्ट पहुँचा उसे किसी यक्षिणी का द्वेष नहीं बताया गया, वह उस युग के लिये स्वाभाविक घटना थी । इससे इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि जैन धर्म में यद्यपि अनेक कष्ट सहनों का विधान है फिर भी व्यर्थ के दुःखों को देय ही माना गया है। १७- ४१ में प्रकरण से जहां इस बात का पता लगता है कि धीरे धीरे श्रमण-विरोध शांत होने लगा था तथा ब्राह्मण भी ब्राह्मण संस्कृति से ऊब रहे थे वहां उस बात का भी खुला होगया है कि जैन शास्त्रों में अशोक वृक्ष को इतनी मह मिली होगी । १८- जैन शास्त्रों में जीवसमास परिष पांच मन आदि के विधान हैं । वे कैसे बने, किस प्रकार बनेका घटना पूर्ण इतिहास सम्भव कल्पनाओं से दिया गया है। इससे उनके इतिहास पर ही प्रकाश नहीं पड़ता किन्तु उनकी वास्तविक अपयोगिता पर भी प्रकाश पड़ता है। पति के की व्यावहारिकता तो खास तौरपर ध्यान खींचती है। १६- मालदेवी को तीर्थंकर क्यों माना गया इसका विवेचन ४४ वें प्रकरण में है । मूल वर्णन शाखांन है। -- ३० वैज्ञानिक दृष्टि से मन्त्र का कोई महत्व नहीं है । पर उस युग में मनुष्य का मानसिक विकास इतना नहीं
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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