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________________ महावीर का अन्तस्तल [२०५ लिये यह स्वर्ग नरक की बात भी जानता हो, ऊर्ध्व लोक और पाताल लोक का भी उसे पता हो इस प्रकार वह त्रिलोकदर्शी भी हो । मुझे विश्वास है कि मैं त्रिलोकदर्शिता और त्रिकालदर्शिता का परिचय देस दूंगा। पर यह त्रिलोक-त्रिकाल-दर्शिता तत्वविषयक ही है, अर्थात् कल्याण की दृाष्ट से उपयोगी पदार्थों के जानने के विषय में ही है, निरुपयोगी अनन्त पदार्थों को जानने से कोई प्रयोजन नहीं जो आध्यात्मिक और व्यावहारिक आचार का विषय है उसके लिये उपयोगी है, वही तत्व है, उसी का पूर्ण ज्ञान सर्वनता है। मैं उसके निकट पहुँच रहा हूं। ५३-त्रिभनी १५ टुंगी ९४११ इतिहास संवतआज मुझसे आनन्द ने पूछा-यह विश्व कब से है ? मैंने कहा-यह अनादि है। आनन्द- और कब तक रहेगा ? मैं- सदा रहेगा, इसका अन्त नहीं है । आनन्द - क्या इसका आदि और अन्त कोई नहीं कहसकता? मैं जब आदि अन्त है ही नहीं, तव कौन कह सकेगा ? जो कहेगा वह झूठ कहेगा। आनन्द-क्या विश्वकी प्रत्येक वस्तु अनादि अनन्त है ? मैं- प्रत्येक वस्तु अनादि अनन्त है। आनन्द-तब हम पदार्थो की उत्पत्ति और नाश क्यों देखते हैं ? जन्म क्यों होता है ? मरण क्यों होता है ?
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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