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________________ महावीर का अन्तस्तल ~ ~~ ~~ ~~~vara m ५० - अनुमति की आवश्यकता २३ जिन्नी ९४४३ इ. सं. वैशाली से मैं वाणिजक ग्राम की तरफ रवाना हुआ। थोड़ी दूर पर मंडकी नदी मिली । वहां नाव पड़ी थी, नाविक लोग यात्रियों को इस पार से उस पार पहुँचा देते थे। एक नाव पर बहुत से यात्री बैठे थे, नदी पार होने के लिये मैं भी उसपर बैठ गया । नाव नदीपार पहुंची, यात्री लोग साधनों के अनुसार उतराई के रूप में कुछ कुछ देते जाते थे और चले जाते थे। नाविकों ने मुझ से भी उतराई मांगी, पर मेरे पास था क्या जो मैं देता। इसलिये नाविकों ने मुझे रोक लिया। मैं पानी से निकलकर पुलिन में दो चार कदम बढ़ चुका था और वही नाविकों ने मुझे रोक लिया, मैं गरम बालुका में खड़ा रह गया । इधर कई वार नदियों को पार करने का अवसर मिला है पर आज सरीखी कभी किसी नाविक ने मुझसे उतराई नहीं मांगी। अपरिग्रही साधु समझकर इतनी सुविधा प्रत्येक नाविक ने दी है और कुछ सन्मान से दी है पर आज का अनुभव विलकुल उल्टा था। एक नाविक ने जरा दृढ़ता से कहा-महाराज, जब तक उतराई न दोगे तब तक हम जाने न देंगे। मैं गरम बालू में खड़ा रहा और अपनी भूलपर पश्चा. त्ताप करता रहा । अगर में नाव पर चढ़ते समय नाविकों से अनुमति ले लेता तो इस समय अपराधी की तरह विवश होकर खड़े होने का अवसर न आता । वेचारे नाविकों का इसमें क्या अपराध ? में राज्य वैभव छोड़कर आत्मकल्याण या जगत्कल्याण के लिये साधु बना हूं इससे उन्हें क्या मतलब ? वे साधुसेवा के
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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