SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीर का अन्तस्तल [१-३. मनुष्य एक जगह बैंठ बैठे ऊब जाता है, हाथ पैर हिलने डुलने को लालायित होजांत हैं, इस समय उनको वश में रखना आव: श्यक है । सभा आदि में तो इसकी आवश्यकता है ही, पर अन्य.. भी अनेक स्थानों पर इसका उपयोग होता है । उसदिन यक्षम-: न्दिर में जब गोशाल सुन युवकों के द्वारा पीटा गया तव में अपनी निश्चेष्टता या आसन परिपह विजय के कारण सुरक्षित रहा । बात यह है कि साधु को चाहे चलना पड़े, चाहे एक आसन में बैठना पड़े, चाहे जमीन पर सोना पड़े, प्रत्येक परि. स्थिति पर विजय पाने की उसमें शक्ति होना चाहिये और उसे अस शक्ति का उपयोग भी करते रहना चाहिये। वध अर्थात् मारपीट आदि को सहने की शक्ति भी साधु में होना चाहिये । साधु को जनता के आचार विचार में क्रांति करना है और जनता के मानस पर अपनी हितषिता की छाप मारना है, ऐसी अवस्था में वह मारपीट को चुपचाप सहन कर जाय तभी वह जनता के हृदय पर अपनी हितैपिता की छाप मार सकता है । साधु के एसे कोई अपने स्वार्थ नहीं हैं जिनके लिये असे किसी से संघर्ष करना पड़े, उसे जो कुछ करना है जनता के लिये करना है इसके लिये वध परिपह का जीतना जरूरी है। रोग भी एक परिपह है । रोग का शरीर पर जो असर पड़ता है असका तो उपाय क्या है ? पर रोग में धीरज रखना . अपने वश की बात है, यही रोग विजय है । जो आदमी शरीर को आत्मा से भिन्न समझता है उसे शरीर की विकृति से आत्मा को विकृत न करना चाहिये । ये दस परिषहें ऐसी हैं जो शारीरिक कहीं जासकती हैं क्योंकि इनपर विजय पाने के लिये शरीर को अभ्यास कराना पड़ता है, या शरीर में सहिष्णुता की जरूरत होती है। हालां कि
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy