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________________ . १५२] महावीर का अन्तस्तल श्रमणों के विरुद्ध वातावरण था । प्रारम्भ के कुछ दिनों तक तो भिक्षा नहीं मिलती थी। बाद में मेरी निस्पत्ता शान्ति आदि देखकर श्रमणों के बारे में लोगों के विचार बदलने लगे, भिक्षा मिलने लगी फिर भी अनी वातावरण को पूरी तरह अनुकूल होने में समय लगेगा। २८ धनी ९४३६६.सं. आज कदलीग्राम आया। यहां भी श्रमण विरोधी वाता. वरण था। गोशाल भोजन करने गया तो लोगों ने उसे भोजन तो दिया पर खादाड़ आदि कहकर काफी गलियाँ भी दी। भोजन के लिये गोशाल यह सब सहगया, पर मैं तो भिक्षा लेने गया ही नहीं । सम्भव है मेरे भिक्षा न लेने से यहां के लोग समझ जाय कि श्रमण खादाड़ नहीं होते। १० चन्नी ६४३६ इ.सं. बीच के गांव में मैंने भोजन लिया था। पर आज जंवू गांव में आया तो यहां भोजन नहीं लिया। यहां के लोगों ने भिक्षुकों के लिये सदावत खोल रक्खा है। किसी के यहां जाओ तो वे लोग निक्षा न देकर असे सदावत में भेज देते हैं। यहां जो कर्मचारी रक्ख गये हैं वे अपमान तिरस्कार करते हुए मिक्षकों को भोजन करात है। गोशाल ने यह सब सहकर भोजन कर लिया। गोशाल से ही मालूम हुआ कि साधारण भिक्षुक से श्रमण को आधिक गालिया मिलती हैं, इसालेये भी मैं नहीं गया। ___ बिना भोजन किये बिहार करते समय में सदावत के सामने से ही निकला । मुझे आते देखकर पहिले तो कर्मचारियों ने नाक मुँह सिकोड़ा, पर जब मैंने मिक्षा. नहीं ली तब उनने पुकारा । पर मैं अपनी गति से आगे बढ़ता ही गया । गोशाल ने कहा-तुम लोग श्रमणों का तिरस्कार करते हो, असभ्य हो,
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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