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________________ १५० .. . महावीर का अन्तस्तल . . " ११ जिन्नी ९४३६ इ. सं. आज चोराक गांव में आये। यहां कहीं ब्राह्मग भोजन के लिय रसोई न दी थी। गांगाल वहां भिक्षा के लिये गया। तर निष्कारण ही ब्राह्मणों ने उसे पीटा । जब जनता के कुछ लोगों ने विरोध किया तब उनने कहादिया कि यह चोर की तरह छिप छिपकर देखता था इसलिये हमने इसे चोर समझा। यह उनका निपट बहाना था। सूल यात श्रमण विरोध की थी। पर जनता के कुछ लोगों को ब्राह्मणा का यह बहाना जचा नहीं, इसलिये उनमें से किसी ने गोष्ठी मंडप में चुपचाप आग लगादी, इसलिये मंडप जलाया। १४ जिन्नी ६४३६ इ. सं. . आज कलंधुक ग्राम में आय । यहां मेध और कालहस्ती नामक दो शैलालक भाई रहते थे। इनने हमें चोर समझा और पकड़ लिया। पर मेघ ने पीछे से घहिन्नान लिया। मेध पिताजी के समय में हमारे यहां नौकरी कर चुका था इसलिये पहिचानने पर क्षमा मांगी और हमें छोद दिया। गुप्तचरों को श्रमण वेप देने से ऐसी ही भ्रमपूर्ण दुर्घटनाएं होरही हैं। १० धामा ६४३६ इ.सं. यह सोचकर मैं लाट देश फी तरफ गया कि देखें तोश्रमण संस्था के विषय में इस तरफ लोगों के क्या विचार हैं। पर यहां मुझे निराश होना पड़ा। यहां सब के सब आदमी श्रमण-विरोधी हैं। लाट देश में प्रवेश करते ही यहां के लोग मुंडा मुंडा भिखमंगा कहकर नाक सिकोड़ने लगे, फोह पत्थर मारने लगे, ऊपर कुत्ते छोड़ने लगे, कोई चिहाने लगे, कोइ विदूषक की
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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