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________________ १४६ ] महावीर का अतितल गोशाल बोला- नाम तो मैने नहीं पुत्रा, पर इतना मैंने सुना था कि किसी ने उसे श्रीभद्रा नाम से पुकारा था, पर आप से यह सब कहा किसने ? I मैं- भेरे ज्ञानं ने कहा । मैं पहिले ही जान गया था कि आज तुम नरमांस का भोजन करोगे । अन्ततः वही हुआ । उस खार में नरमांस नररत यहां तक कि नख और बाल तक मिले थे । अब तो गोशाल बहुत घबराया। ग्लानिसे थोड़ी देर में उसे उल्टी हाई । उल्टी को उसने ध्यान से देखा तो उसमें बाल और नख के छोटे छोटे टुकड़ दिखाई दिये । वह क्रोध से कांपने लगा और क्रोध में ही नगर की तरफ भागा। तीन मुहूर्त में लीटा। अभी भी उसके चेहरे पर कठोरता के भाव थे । सेठ सेठानी असे नहीं मिले, तब सारे मुहल्ले को हजारों 'गालियाँ देकर और सेठ के घर में आग लगाकर चला आया । 1 मुझे यह सब सुनाकर गोशाल बड़बड़ाता ही रहा । बोला- आखिर जो होना होता है होकर ही रहता है । नियतिवाद ही सच्चा है । ३७ - पथिक का उत्तरदायित्व १२ मम्मे ६४३६ ३. सं. आने जाने में मनुष्य इतना अनुत्तरदायी है कि वह इस यात कानिक भी ध्यान नहीं रखता कि दूसरों के प्रति भी हमारा कुछ कर्तव्य है । वह अच्छे से मच्छे स्थानपर जायना तो उसे गंदा कर देगा, आग जलायगा तो बिना बुझाये चलदेगा । मनुष्य के भीतर यह पशुता पूरी मात्रा में विद्यमान हैं । गत रात्रिमें इसका बड़ा कबुआ अनुभव मिला ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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