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________________ १४० ] महावीर का अ-तम्तल मर्यादित करने के लिये यह आवश्यक है कि मद्यपान' बिलकुल बन्द किया जाय, क्योंकि जहां मद्यपान आया वहां सारी मर्यादाएँ टूटीं । अपना मान भूलजाना तो सब पापों की जड़ है । इसलिये मद्यनिषेध पर मैं अधिक से अधिक जोर दूंगा । जब मैं अपना तीर्थ बनाऊंगा तब जो लोग तीर्थ प्रचार के लिये साधु साध्वी बनेंगे उनके लिये तो मद्य पूर्ण निषिद्ध रहेगा ही, पर जो गृहस्थ भी मेरी बात के सच्चे श्रोता बनेंगे, श्रावक बनेंगे, अनके लिये भी मद्य निषिद्ध रहेगा क्योंकि इसके बिना किसी भी कार्य में कोई मर्यादा कराई ही नहीं जासकती । शृंगार के प्रवाह के बारेमें यह नियम बनाऊंगा कि कामुकता के गांत न गाये जायें, न नृत्य में काम वेष्टाएँ की जायँ । भक्ति और कर्तव्यबोधक गीत ही गाये जायें और गीतों के अनुरूप ही नृत्य चेष्टाएँ हों। इस ढंग से नृत्यगीत की प्यास भी वुझ जायगी और अपेय भी न पीना पड़ेगा । 1 सम्भव है कभी मेरा तीर्थ विशाल रूप धारण करे, जब मैं प्रवचन के लिये किसी नगर में समवशरण करूं तो लोग उसके लिये विशाल मंडप बनायें, गायक नृत्यकार भी वहां आयें, उस समय उन्हें इसी मर्यादा के भीतर नृत्यगान करने दूंगा । नृत्यगान से जविन में कलुपता भी न आने पायगी और उनके रुकने से विष्फोट भी न होने पायगा । पर यह सब दूर की बात है । अभी तो मुझे यह सर्व अंधेर चुपचाप देखते रहना पड़ेगा। जब तक अन्य परिस्थितियाँ अनुकूल न होजायें तब तक गाल बजाने से क्या लाभ? पहिले मनुष्य में पात्रता पैदा करना चाहिये । ऐसा वातावरण और प्रभाव पैदा करना चाहिये कि नियन्त्रण से विद्रोह न पैदा हो सके । आज यहां मेरा क्या प्रभाव था, और क्या वातावरण था कि मैं रोकता तो सफल होता ? कदाचित् मेरे बोलने की
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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