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________________ १३०] - महावीर का अन्तस्तल अपन यह भोजन करें। मैंने कहा-तुम उसकी आशा न करो, भात पकनेवाला नहीं है । पकने के पहिले ही हंडी फूट जायगी। मैं समझ गया था कि जो इतने नासमझ हैं वे फलकर निकलते हुए भात को रोकने की कोशिश अवश्य करेंगे । और इसीसे हंडी फूट जायगी। अन्त में ऐसा ही हुआ । जव भात फूलकर निकलने लगा तब वे हंडी के मुँह पर पत्थर का एक ढक्कन ढककर वांस से दवाकर बैठ गये । थोड़ी ही देर में हंडी फूट गई । भात बिखर गया। पर पथिक बहुत भूखे थे । उनने ठीकरों में से अधपके भातको बीन बीनकर खालिया, गोशाल वहां गया पर असे कुछ मिल न सका। - । लौटकर गोशाल ने कहा-भगवन अव मेरा और भी पक्का निश्चय होगया है कि नियतिवाद ही सत्य है । जो होना होता है वह होकर रहता है, यत्न उसे रोक नहीं सकता। मैंने देखा कि अब गोशाल को समझाना वृथा है । उसके मन में नियतिवाद के वीज बहुत पक्के जम गये हैं। .: - कार्यकारण की जो परम्परा है अस पर विचार करन से और थोड़े से मनोविज्ञान से बहुत सा. भविष्य बताया जासकता है, पर गोशाल में इतनी समझ नहीं है, किन्तु वह अपनी नासमझी को नहीं समझना चाहता इसलिये वह उसे प्रकृति के मत्थे थोप देना चाहता है। वह अपनी असफलता को अपनी मूर्खता का परिणाम नहीं मानना चाहता किन्तु यह कहना चाहता है कि वह घटना तो प्रकृति से नियत थी, उसे किसी भी तरह बदला नहीं जासकता था, तब मैं क्या करता ? गोशाल जो इसप्रकार.नियतिवाद के बन्धन में पड़ रहा
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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