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महावीर का अन्तम्तल
कीचड़ होने से बैलों को बड़ा कष्ट हुआ। एक बैल के मुंह में से तो रुधिर निकल पड़ा। तर उस व्यापारी ने गंववालों को वह बैल सौंप दिया और उसके खाने के लिये धन भी.दे दिया, और वह चला गया । पर गांववालों ने उसका धन तो रख लिया पर बैल को खाने न दिया . बैल भूखसे मरकर यक्ष होगया,। तब उस यक्ष ने गांव में ऐसी महामारी फैलाई कि मृतकों का दाहकर्म करना भी कठिन होगया । लोग यों ही मृतकों को मैदान में फेंकने लगे और वहां अस्थियों का ढेर लगगया। इससे इस गांव का नाम अस्थिक होगया।
. हम लोग गांव छोड़कर भागे तो वहां भी महामारी साथ गई । ज्योतिपियों से बहुत पूछा, गृहदेवियों की पूजा की, पर महामारी न गई । तब ज्ञानदादा ने कहा कि तुम लोगों ने जो बैल का धन खाया था उसीके पाप से यह सब हुआ है। वह वैल यक्ष हुआ है और हाथमें पैना शूल लिये घूमा करता है, उसी शूलपाणि यक्ष के नामले तपस्या करो ! पूजा करो ! तब वह यक्ष प्रसन्न होगा।
ज्ञानदादा के कहने के अनुसार हम लोगों ने उपवाल किये, केवल फलहार पर रहे, गरम पानी पीने लगे, नगर की सफाइ को और उसे सजाया, सब हड्डियाँ उठवाकर एक जगह गड्ढे में भरदी और उस पर यक्ष का मन्दिर बनवा दिया, खूब पूजा की. तब कहीं यक्षराज प्रसन्न हुए और महामारी दूर हुई। लेकिन यक्षक डर से इस मन्दिर में रातमें कोई नहीं रहता.। एक बार एक आदमी गत में रहने से मरगया था। तब से लोग शाम को ही यहां से चले जाते हैं। - सारी कहानी सुनकर मैं मन ही मन खूब हँसा । जनता के अन्धविश्वास और मूर्खता पर खेद भी, हुआ। कहानी का रहत्य ता कहानी सुनते सुनते ही ध्यान में आगया था । लोग