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________________ ९० ] साधारणता को शिथिलता का बहाना बना लेते हैं । अत्र में राजकुमारपन के बन्धनों से मुक्त होगया हूँ अब साधारण जन की आंखों से जगत को देखूंगा और साधारण जन की कठिनाइयों का अनुभव कर जगत की और जीवन की चिकित्सा करूंगा । महावीर का अन्तस्तल रात इसी तरह के विचारों में निकल गई । उपाकाल में जब कि मैं कार्योत्सर्ग से खड़ा हुआ था दो बैल आकर मेरे पास बैठगये । वैलों का स्वामी किसान शामको यहां चरने छोड़ गया था और वस्ती में चला गया था । बैल चरते चरते अटवी की तरफ निकल गये थे और पेट भरने के बाद उषा काल में फिर आकर बैठ गये थे । किसान रातभर बैलों को ढूँढ़ता रहा और रातभर की परेशानी से झल्ला गया । - सवेरे जब बैल उसने मेरे पास बैठे देखे तब उसे भ्रम हुआ कि बैल रातभर मैंने छिपा रखे थे और सवेरे ले भागने वाला था । इसलिये आक्रोश करते हुए बोला कि यह सब तुम्हारी बदमाशी है । बनते हो साधु, और करते हों बदमाशी । इस प्रकार गुनगुनाते हुए वह मुझे रस्सी लेकर मारने को दौड़ा। इतने में बगल से आवाज आई- अरे मूर्ख, यह क्या करता है ? • किसान का हाथ तो रुक गया पर मुँह चला । वोलायह साधु मेरे बैल लेकर भागना चाहता था । आगन्तुक ने कहा- अरे मूर्ख, जानता है ये कौन हैं ? ये कुंडलपुर के राजकुमार वर्धमान हैं जिनने कल ही इतना दान किया है जिसमें तेरे कई कुर्मार गांव खरीदे जासकते हैं । ये सर्वस्य का व्याग कर तपस्या के लिये निकले हैं। क्या ये तेरे चैल लेंगे ? मेरा नाम सुनते ही और मेरी राजकुमारता का पता
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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