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________________ महावीर का अन्तस्तल [८७ A rr~~ गया। पर फिर सनाई दिया-वर्धमान कुमार, तनिक ठहरो तो मैं बूढ़ा ब्राह्मण हूँ. दौड़ता दौड़ता थक गया हूं। २. मैं रुका और लौटकर देखा कि सोम काका हांफते हए चले आरहे हैं । पिताजो को ये समवयस्कता और परिचय के नाते मित्र कहा करते थे इसलिये मैं इन्हें चाचा कहता रहा हूं। इधर एक वर्ष में ये दिखाई नहीं दिये । एक कारण तो यह कि पिताजी चले गये थ, दृसग यह कि में अपनी साधना में लीन था। आज इन्हें देखकर याद आई । सोचा बेचारे विदाई के समय न आपाये थे सो अब आगये हैं। ___ फाका का यह वात्सल्य देखकर कुछ अचरज हुआ। . काका पास में आकर खड़े होगये । ठंड के दिन थे पर दौड़ने की गर्मी से स्वेदविन्दु उनके ललाट पर मोतियों की झालर से लटकने लगे थे। क्षणभर गककर अपने कन्धे पर पड़े हुए फटे चिथड़े से उनने वह मोतियों की झालर मिटादी और गहरी सांस लेते हुए बोले-मुझे यह ज्ञान नहीं था कुमार, कि तुम आज निष्क्रमण करने वाले हो । मैं अभागी दरिद्री गांव गांव भिक्षा मागा करता हूं तब भी चरितार्थ नहीं चलता । अभी अभी जव में गांव से भिक्षा मांगकर आया तब तुम्हारी ब्राम्हणी काकी ने मुझ खूब फटकारा, कहा-तुम अभागी हो, और तुम्हारे ही कारण मैं भी अभागिनी हूं कुमार चले गये, और अटूट सम्पत्ति दान कर गये पर तुम उस अवसर पर पहुँचे ही नहीं, और न कुमार को विदाई दी। जग का दारिद्रय मिटगया और तुम कंगाल के कंगाल ही रहे । क्या कहूं कुमार, तुम्हारे निष्क्रमण की बात सुनते ही मैं इतना बेचैन होगया कि हारा थका होने पर भी न तो मैंने विश्राम किया न भोजन किया और दौड़ा हुआ चला आया।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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