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________________ ८.] महावार का अन्तस्तल ....vipx....~ ... रात्रि है । इसके बाद ऊपरी दाम्पत्य भी विच्छिन्न होजायगा।। .. कल उन लोकान्तिक राजयोगियों को गते सुनकर देवीने मुझे निष्क्रमणका अनुमति देदी, फिर भी इस. त्याग का बोझ उन्हें काफी भारी पड़रहा ह । उनके विवेकले, विश्वाहतारताने अनु-'. मति दी है पर मन तो कराह ही रहा है.. पर इसका उपाय क्या है ? दुनिया के तामस यज्ञों को दूर करने के लिये यह महान, सात्विक यज्ञ करना ही पड़गा। . .. ... . एक बार इच्छा तो हुई कि देवी के कक्षम : जाकर उन्हें सान्त्वना दे आऊं जिसमें उन्हें नींद आजाय, पर रुकगया। इस समय उन्हें सान्त्वना देने का अर्थ होता उन्हें रातभर. रुलाना, इसलिये नहीं गया। . मैं चाहता हूँ कि मेरे जाने के बाद वे वैधव्य की यातना का अनुभवं न करें, किन्तु त्याग के महान गौरव का अनुभव करें।' - इन सब विचारों में काफी रात निकल गई । चंक्रमण से कुछ थकावट सी मालूम हुई और मैं लेट गया। थोड़ी देर में निद्रा भी आगई। पर कुछ मुहूर्त ही 'सोपाया था कि मैं चौक गया । आंख खुलते ही देखा कि देवी शैया के नीचे बैठी बैठीइकटक मेरे मुँह की ओर देख रही हैं। मुझे आश्चय नहीं हुआ । फिर भी प्रेमल स्वर में मैंने पूछा-इतनी गत तक क्या तुम सोई नहीं दंवी? . . . . . . . . . . . . . . . . . . देवी के ऑट कांपने लगे, मालूम हुआ दोनों ओठ उम ड़ती हुई रुलाई का धक्का नहीं सह पारंहे है। बड़ी कठिनाई से रुंधे गलेसे उनने कहा-सोने को तो सारा जावन पड़ा है देव! .. मैं उठकर बैठ गया । देवी का हाथ पकड़ कर मैंने उन्हें शय्या पर बिठला लिया और हल्की सी मुसकुराहट लाते कहा-इस तरह इकटक क्या देख रही थीं देवी? A . . .
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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