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________________ : ५३ : कर्क राशि मे विद्यमान है । कर्क राशि मे गरु उच्चता को प्राप्त है। यदि गुरु उच्च राशि का या स्व राशि का अथवा मूल त्रिकोण राशि का केन्द्र में हो तो 'हस' नाम का योग बनता है। हस योग वाला जातक अत्यन्त सुन्दर होता है, रक्तिम आभा-युक्त मुखाकृति, ऊँची नासिका, प्रफुल्लित कमलोपम सुन्दर चरण युगल, गौराग, हँसमुख, उन्नत ललाट, विशाल वक्षस्थल वाला होता है । ऐसा महापुरुप मधुर भाषी होता है। उसके मित्रो तथा प्रशसको की सख्या निरन्तर बढती ही रहती है। सभी के साथ भेद रहित श्रेष्ठ व्यवहार करने का इच्छुक रहता है और उसमे चुम्बकीय व्यक्तित्व होता है। गुरु विद्या, सन्तान, धन, एव भाग्य का विधायक एव प्रशस्त पथ प्रदर्शक होता है। गुरु के विना ज्ञान प्राप्त नही होता "गुरु गोविन्द दोऊ ठाडे किनके लागे पाँय। वलिहारी गुरु की जिन गोविंद दिये वताय ॥" मकर लग्न वाले व्यक्तियों को गुरु विशिष्ट फल देने के लिये तत्पर नही रहता क्योकि वारहवें और तीसरे स्थान का स्वामी गुरु होता है। गुरु की दृष्टि लग्न पर ग्यारहवे और तीसरे पर जातक के शरीर को उच्चासन पर आरूढ कराने का विचार सन्मार्ग पर चलाने का सकेत, मुक्ति-रमा को प्राप्त कराने की धारणा तथा उच्च विद्याओ से अलकृत करने का सकल्प गुरु मे विद्यमान है। गुरु पर अपने मित्र उच्च के मगल की दृष्टि है जिससे परस्पर एक दूसरे से सन्मुख दृष्टि सम्बन्ध बना रक्खा है । गुरु के साथ राहु भी सप्तम मे है। राहु यदि कर्क राशि मे केन्द्र स्थान मे स्थित हो तो कारकता को प्राप्त होता है। राह की दृष्टि भी गुरु की ही भांति है। भगवान महावीर स्वामी का शरीर वज्र के समान मजदूत
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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