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________________ • ५१ : रखने वाला कर्मशूर वना दूंगा क्योकि मुझ पर और सूर्य पर शनि-मगल की पूर्ण दृष्टि है और मगल एव केतु का केन्द्रिय शासन है। यदि इनकी दृष्टि न होती तो मैं सासारिक सुखो का आनन्द ही आनन्द दिलाता। इस परिस्थिति मे मैं तो चाहता हूँ कि भगवान महावीर स्वामी की आत्मा परम-धाम (मोक्ष) मे पहेंच कर आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाये। उच्च के सूर्य ने चतुर्थ स्थान में स्थित होकर सहस्त्रों सूर्य जैसा प्रकाश चारो दिशाओ मे फैलाकर आज तक भगवान् महावीर स्वामी के नाम को लोक भर मे चिरतन व्याप्त किया। भगवान महावीर स्वामी के समय मे हिसा का अधिकाधिक वोलवाला था। यज्ञ मे जीवित अश्वादिको की आहुति दी जाती थी। तत्कालीन हिंसात्मक असत् धर्म की प्रवृत्ति का अवलोकन जीवित प्राणियो को हवन-कुड की प्रज्ज्वलित अग्नि मे भस्म होते देख कर भगवान महावीर स्वामी की दयार्द्र आत्मा हा हाकार कर उठी और अत्यन्त द्रवीभूत होकर अपने समस्त ऐहिक सुखो का परित्याग कर प्राणिमात्र को आकुलता रहित सच्चा सुख प्राप्त करने का उन्होने दृढ सकल्प किया। यह सत्कार्य भी उच्च के सूर्य ने ही किया । पचम स्यान मे शुक्र स्वराशि के अन्तर्गत है। शुक्र पर किसी शुभ ग्रह की या किसी अनिष्टकारी पापिष्ठ ग्रह की दृष्टि नही है । पचम स्थान से विद्या यत्र-मन्त्र , सन्तान, सिद्धि आदि के प्रवन्ध का विचार किया जाता है। शुक्र स्वय ही आचार्य है। मकर लग्न में शुक्र को कारकता प्राप्त होती है । अर्थात् एक प्रकार से विशेपाधिकार प्राप्त होते हैं । यदि हम ध्यान से देखेंगे तो शुक्र पचम स्थान मे समस्त ग्रहो के गुणो को लिये हये और समस्त ग्रहो का बल धारण किये हुये स्वराशि मे स्थित होकर महावली और हर्षोत्फुल्ल दिखाई देता है। मेष राशि में सूर्य और
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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