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________________ ४८ रहता है। उसका चरित्र अत्यन्त उच्च कोटि का होता है। ऐसा जातक प्रलोभन या दवाव मे आकर अपने निश्चय को कदापि नही बदलता। सूर्य और बुध के मेष राशि मे स्थित होने से लग्न में बैठे हुए मगल मे और भी अधिक विशेपता होती है। मगल पर गुरु की सप्तम दृष्टि सोने मे सुहागा जैसा कार्य कर रही है। मगल ने जातक के शरीर को सर्वोत्कृष्ट कुल में जन्म लेने का अधिकार प्राप्त कराया है। उसने ही उसे उच्चासन पर विराजमान करके शासन के अनुकूल शारीरिक बल एव सर्वोपरि मान-प्रतिष्ठा प्रदान की। मगल के साथ केतु भी है। मगल केतु से अति शीघ्रगामी है अतएव मगल ने अपने और सूर्य-बुध के गुण केतु को प्रदान करके उसे अपना चमत्कार दिखाने के लिए लग्न (शरीर) मे छोड़ दिया। केतु ग्रह कह रहा है कि मुझ मे अकस्मात् परिवर्तन लाने का विशिष्ट गुण है तथा मुक्ति दिलाने का अधिकार प्राप्त है इसलिये मैं इस जातक के शरीर को अचानक ही परिवर्तन शील वनाऊंगा और ऐसी घटनाएं घटित करूँगा जिन्हे कभी किसी ने स्वप्न मे भी न विचारा हो। समस्त ऐहिक सुखों से वचित करके एक अनोखे आदर्श पथ पर चलने के लिए जातक के शरीर को वाध्य करूँगा । पुनश्च केतु ग्रह कह रहा है कि मैं तुच्छ विषय सुखो की लालसा को लुप्त करके आकुलता रहित अविनाशी शाश्वत परम सुखों की ओर ले जाऊँगा , क्योकि मुझमे उच्च के सूर्य और उच्च के मगल के गुण विद्यमान हैं। उच्च के गुरु की मुझ पर और लग्न (शरोर) पर दृष्टि है। गुरु सन्मार्ग दर्शक भगवान महावीर स्वामी के शरीर का सम्बन्ध सद्गुरु से हुआ और सन्मार्ग पर चलकर आवागमन के चक्कर को सदा
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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