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________________ : १३ जो समवशरण के हृदय कमल पर अन्तरीक्ष विराजमान है तथा जो तीन छत्र, चौसठ चँवर, देव दुन्दुभि, अशोक वृक्ष, प्रभा - मण्डल, रत्न सिंहासन, पुष्पवृष्टि और दिव्य ध्वनि इन अष्ट प्रातिहार्यों से मंडित है ऐसे गणधर चर्चित सुरपति अर्चित तीर्थंकर महावीर प्रभु अपनी प्रशान्त वैर विरोधी शीतल शान्त छत्र-छाया मे इस क्षुद्र प्राणी को स्थान दान देकर धर्मामृत का आस्वाद कराने की दया करे परम पुनीत पच्चीसवें शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि अर्पयिता : पन्नालाल जैन आचिटेक्ट ( साहित्यकार ) व्यवस्थापक जैन साहित्य प्रकाशन ४६८३ शिवनगर न्यू देहली ११०००५
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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