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________________ विराट् धर्म सभा विवरण (१) खाई को घेरे वन-उपवन पुनि दिशा चतुर्दिक ध्वजा पीठ | फिर स्वर्णिम कोट दूसरा है द्वारो पर भवनो के किरीट || (२) पुनि कल्प वृक्ष वन में मुनि सुर के बने हुए हैं सभा भवन । है मणिमय कोट तृतीय रचा द्वारो पर कल्पो के सुरगण || ( 3 ) पुनि लता भवन स्तूप आदि श्री मंडप क्रमश तने हुए । है केन्द्र स्थल मे गधकुटी चीदिशा कक्ष है वने हुए ॥ (४) इन बारह कक्षो मे क्रमश मुनि कल्पवासिनी आर्यिकाएँ । ज्योतिष व्यन्तर भवनत्रिक की हैं समासीन देवाङ्गनाएँ ॥ (५) फिर देव भवन व्यन्तर ज्योतिष अरु कल्प वासि नर पशु के है । ये सभी सभ्य श्रोता वनकर सन्मति वाणी को सुनते है || (छ) उस गधकुटी कमलाशन पर है अन्तरीक्ष श्री वर्द्धमान । हैं समवशरण के जीव सभी दिव्यध्वनि श्रवणातुर महान || (१३४)
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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