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________________ यह गुरुतर गजरथ सचालित किया गया है, अत उनके प्रति में श्रद्धा पूर्वक अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। __कृतज्ञता के द्वितीय सुपान आदरणीय श्रीमान् वाबू रतन लाल जी जैन वकीलपुरा देहली है जो हमारे प्रकाशनो मे मुक्तहस्त से आर्थिक सहायता प्रदान कर उन्हे प्रकाश मे लाने का पुण्यार्जन करते ही रहते हैं । इस ग्रन्थ के एक खण्ड के प्रकाशन का भार अपने कधो पर लेकर हमारे ऊपर भारी अनुकम्पा की है एतदर्थ हम उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते है। कृतज्ञता के तृतीय एव चतुर्थ पात्र है श्री वाबू दुर्गादीन जी श्री वास्तव एडवोकेट तथा श्री रमेश सोनी 'मधुकर'। दोनो महानुभाव सुमधुर गीतकार एव सिद्ध हस्त चित्रकार है । स्थानीय विद्वानो के निर्देशन मे रहकर उन्होने न जाने कितनी बार इन चित्रो को सवारा सजाया है। चित्र सकलन और चित्र निर्माण मे जमीन आसमान का अन्तर होता है। उभय चिन कारो के जैनेतर होने से उनके सामने सैद्धान्तिक अवोधता की विकट समस्यायें थी। उन्हें हल करने के लिये भी कम प्रयास नही करने पडे। हमारे परम स्नेही सहयोगी सम्पादक श्री फूलचद जी पुप्पेन्दु शिक्षक श्री पार्श्वनाथ जैन गुरुकुल खुरई ने इस ग्रन्थ के निर्माण कार्य सम्पन्न करने के लिये वस्तुत कुछ उठा नही रक्खा अत. उनके प्रति भी मै अपना आभार प्रकट करके हलका फुलका हो जाना चाहता हूँ। ___इस सुअवसर पर मैं श्री पार्श्वनाथ जैन गुरुकुल खुरई के प्राचार्य श्रीमान् नेमिचन्द जी जैन एम० ए० साहित्याचार्य वी० एड० को भी कदापि विस्मरण नही कर सकता जिन्होने इस ग्रन्थ को सजाने-सवारने मे समय-समय पर अपनी बहुमूल्य रायें देकर हमे उपकृत किया है, वा मेरी प्रार्थना पर उन्होने सम्पादकीय वक्तव्य लिखकर मुझे आभारी बनाया है।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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