SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हीयमान से वर्द्धमान रहवाँ ए मर करत नर्क निगम प्रथम तीन पर्यायें क्रमश महावीर की निम्न प्रकार । पुरूरवा, सौधर्म स्वर्गसुर, भरत-पुत्र मारीचि कुमार ॥१॥ फिर चौथी से लेकर छटवी पर्यायो का है इतिहास । ब्रह्म स्वर्गसुर जटिल तपस्वी प्रथम स्वर्ग मे पुन निवास ।।२।। सप्तम से नवमे भव तक फिर उनने यो भव भ्रमण किया। पुष्पमित पुनि प्रथम स्वर्ग में अग्निमित्र अवतरण किया ॥३॥ दशवॉ ग्यारहवाँ बारहवाँ, भद क्रमश. इस भांति भये । सनत्कुमार स्वर्गसुर होकर अग्निभूति माहेन्द्र गये ॥४॥ तेरहवाँ एव चौदहवाँ भव उनके इस भाँति हुए। भारद्वाज विप्र सर करके ब्रह्म स्वर्ग मे देव हुए ॥५॥ इसके बाद अनन्त काल तक नर्क निगोद प्रवास किया। स्थावर विकलत्रय नस मे युगो युगो तक वास किया ।।६।। फिर पन्द्रहवाँ भव स्थावर नामक ब्राह्मण रूप हुआ। सोलहवे भव स्वर्ग चतुर्थे जाकर देव अनूप हुआ ।।७।। सत्रहवाँ भव विश्वनन्दि मुनि महाशुक्र अट्ठारहमा। था उनीसंवा नारायण पद बीसम नारक महातमा ।।८।। इक्कीस और वाईस तथा तेईस हुए भव यो क्रमश. । सिह नारकी प्रथम नर्क का, सम्यक्त्वी सिह हुआ पुन ।।६।। चीबीस और पच्चीस तथा छब्बीस भवो की पर्याय । सौधर्म स्वर्ग सुर विद्याधर फिर स्वर्ग सातवे पहुचाये ॥१०॥ सत्ताईस नृपति हरिषेणा महाशुक्र सुर अट्ठाईश । चक्रवति उनतीस तीसवे सहस्रार के हुए अधीश ।।११।। एकतीसवे भव मे आये बनकर मुनिवर नन्दकुमार । बत्तीसम मे लिया जिन्होने अच्युत स्वर्ग मे सुर अवतार ॥१२॥ अन्तिम भव मे अच्युत स्वर्ग से चयकर सुत सिद्धार्थ हुए। हीयमान से वर्द्धमान यो सिद्ध प्रसिद्ध कृतार्थ हए ॥१३॥
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy