SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ लोक विजेता महामल्ल सव, काम-सुभट योद्धा से हारे । रभा और तिलोत्तमाओ पर, हरिहर ब्रह्मादिक भी वारे ।। १७५ तप से विचलित करने प्रभु को, अप्सराओ ने हाव-भाव से । खूव रिझाया महावीर को, हार गई पर ब्रह्म-भाव से। १७६ पर ब्रह्म मे लीन तपस्वी, डावांडोल हुआ नहिं किञ्चत् । प्रलय-पवन से हिले शैल पर, मन्दराद्रिनहिचलितकदाचित् ।। पद दलिता चंदना के हाथों महावीर श्री द्वारा प्रहार ग्रहण १७७ वैशाली गणतन्त्र, सघ के, अधिनायक राजा चेटक थे । महावीरश्री के मातामह, वे तो जनकसुता-सप्तक थे। १७८ राजकुमारी सती चंदना, कन्या थी षोडस वर्षीया । अपहृत एव पितृ वियुक्ता, वस्ता सुन्दरि अति कमनीया ॥ १७६ क्रीता दासी केश मुडिता, दलिता दुखित वन्दिनी थी। खाने को कोदो के दाने, सेठानी से पाती थी। १८० षण मासिक उपवासी प्रभुवर, आहारार्थ निकलते हैं । उपर्युक्त अनुसार आखडी, की विधि लेकर चलते हैं।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy