SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्द्धमान श्री के शैशव की __ वीरोचित क्रीडाएं तथा तारुण्य में अनासक्ति १४६ शैशव सुलभ वाल लीलाएं, लोकोत्तर थी वर्द्धमान की । सजय-विजय मुनीश्वर चारण, की शंकाये समाधान की। १४७ ज्यो ही शिशु को देखा उनने, उन्हे तत्त्व का वोध हो गया । वर्द्धमान का नाम करण तव, सन्मति से सबोध हो गया। १४८ अष्ट वर्ष के बालक सन्मति, थे सम्यक्त्वी अणुव्रत धारी ।। समचतुस्र सस्थान देह की, धूम त्रिलोको मे थी भारी ॥ १४६ 'सगम' नामक एक देव तव, शक्ति परीक्षा लेने आया । महा भयकर नाग रूप धर, उसी वृक्ष पर जा लिपटाया ॥ जिस पर खेल रहे थे सन्मति, साथी सयुत अड-डावरी । उतरे फण पर निडर पैर रख, देव विक्रिया हुई बावरी ॥ अत. तभी से वर्द्धमान शिशु, सन्मति महावीर कहलाये । वश मे किया मत्त हाथी जव, तब से नाम वीर का पाये । १५२ धर्म नाम पर जीवित नर-पशु, वैदिक युग मे होमे जाते ।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy