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________________ d सात हाथ ऊंचा शरीर था, सप्त धातु से रहित ललाम । आयु एक सागर वर्षों की मति, श्रुति अवधिज्ञान अभिराम ।। २२ मष्ट ऋद्धियो 'का धारी वह, पाकर अनुपम पुण्य-विभूति । अनासक्त रह कर भोगो से, करता सदा आत्म-अनुभूति ॥ यद्यपि वह देवाङ्गनाओं के, साथ सतत करता था केलि । तो भी उसे न मूच्छित करती, थीक्षणमात्र विषय विष-वेलि ॥ २४ आयु पूर्ण कर देव धरा पर, ऋषभदेव का पौन हुआ । भरत चक्रवर्ती के घर में, यह 'मारीचि' सुपुत्र हुआ । भरत चक्रवर्ती पुत्र मारीचि कुमार २५ छह खंडों की वसुन्धरा का, प्रमुख राजधानी का देवेन्द्र । भरतेश्वर थे जिसके अधिपति, निर्माता जिसका देवेन्द्र ।। २६ उसी अयोध्या मे चक्री की, प्रिय 'धारिणी' के उर से । सुत 'मारीचि' हुआ मेधावी, चय कर सौधर्मी सुर से ।। २७ भोगो से होकर विरक्त श्री, 'ऋपभदेव' निर्ग्रन्थ हुये । चार सहल नृपति भी उनकी, देखा देखी सन्त हुये ।।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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