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________________ ا ع ال निम्न अवस्थाओ से लेकर, ऊँचे से ऊंचे विकास की । क्रमश. झाँकी यहाँ देखिये, महावीर के मोक्ष वास की। महावीर श्री अतीत की परतों में हीयमान से वर्द्धमान वनवासी पुरुरवा पुण्डरीकणी वन का वासी, भिल्लराज था 'पुरुरवा' । और 'कालिका' नामक उसकी, भद्र भीलनी श्याम-प्रभा।। १० एक दिवस दम्पति ने मृगया, मे, मृग का जव किया- शिकार । 'सागरसेन' एक मुनि तव ही, एकाकी कर रहे विहार ॥ ११ पुरुरवा ने हरिण- समझ- उन, मुनिपर शर संधान किया । किन्तु कालिका ने निज- पति के, दृष्टि दोष को जान लिया । १२ वोलीनाथ ! रुको, मत मारो, ये वन-देव दिगम्बर है। आत्मलीन. ये पर उपकारी, महाव्रती जिन गुरुवर हैं। १३ इनके वध के पाप-भाव से, मत भव-भव का'बन्ध करो।' इनके . चरण-कमल से,अपने मस्तक,का सम्बन्ध करो।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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