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________________ १४० जाते है वे सव उसके कारण है । व्रतो का अनुष्ठान ही सत्य के सरक्षण के लिए किया जाता है। "वत्थु स्वभावो धम्म” अर्थात् वस्तु का जो स्वभाव है वही धर्म है। आत्मा का स्वभाव सत्य रूप है इसलिए वास्तविक धर्म सत्य ही है। स्त्रियों के प्रति महावीरश्री की उदारता प्रायः स्त्रियो पर सदा से अत्याचार होते आये है, इसलिए सभवतः उनको अवला नाम से पुकारा जाता है। उस समय भी स्त्री जाति पर अधिक अत्याचार होता था। उसका कोई व्यक्तित्व न था। उसका पढने-लिखने तक का अधिकार 'छिन गया था। वह केवल पुरुष की दासी मात्र थी। इतना ही नहीं, उसकी कोई स्वतन्त्र सत्ता भी नही थी। उसे मृत-पुरुप के साथ जबरन जलना पडता था, उसके सतीत्व का भी यही अर्थ था- यही प्रमाण था कि जीवन भर पुरुष की इच्छा पर नाचती रहे और उसके मरने पर उसकी चिता के साथ जल मरे-अपनी आहुति दे दे। भगवान महावीर ने इसका घोर विरोध किया सत्याग्रह किया और पुरुष को स्त्री की महत्ता वतलाई। वे स्त्रियों का वहुत आदर करते थे और उनकी विराट् धर्म सभा मे पुरुपो की अपेक्षा स्त्रियो को उच्च स्थान प्राप्त था। "यव नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः" के सुन्दर सुरभित गीत उन्ही के दिव्योपदेश का फल है। उनके पहले तो 'न स्त्री स्वातन्य मर्हति'-'स्त्री शूद्रौ नाधीयताम्' इत्यादि कल्पित शास्त्राज्ञामओ ने स्त्रीत्व के सारे गौरव को मिट्टी मे मिला रखा था। पर भ० महावीर के उपदेश ने स्त्रियो में
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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