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________________ १३४ लेकिन भगवान महावीर ने ऐसा कदापि नही किया । बहु सख्यक शिष्यो को अनुयायी बनाने का लोभ उन्हे पराजित न कर सका । अतएव भले ही अहिसा धर्म की दृढ चर्या के कारण भ० महावीर के अनुयायी म०-बुद्ध के अनुयायियो से कम संख्या मे रहे, किन्तु जो भी रहे पूर्ण अहिसाव्रती रहे। उन्होने रच मान्न भी मास भक्षण को नही अपनाया और आज तक ऐसा ही होता चला आया है, वौद्ध जनता मांस भक्षण से परहेज नही करती जब कि जैन जनता उससे सर्वथा दूर है। महावीरश्री का तीसरा कदम (अनेकान्तवाद) पहले दार्शनिको का वाद-विवाद अधिकाश मे एक-दूसरे के दृष्टिकोण पर सहानुभूति के साथ विचार न करने पर अवलम्वित था। अस्तु दार्शनिक जगत् मे समता की स्थापना करने तथा अखड सत्य का स्वरूप स्थिर करने के उद्देश्य से भ० महावीर ने स्याहाद (अनेकान्त) सिद्धान्त की स्थापना की थी। स्याद्वाद दार्शनिक एव धार्मिक कलह की शान्ति का अमोघ उपाय है। है । वह अति उदारता के साथ दूसरो के दृष्टि विन्दु को समझने की शिक्षा देता है। विशाल हृदय और विशाल मस्तिष्क बनने का आदर्श उपस्थित करता है। भ० महावीरने स्याद्वाद का सन्देश देते हुए कहा-"तुम ठीक रास्ते पर हो, तुम्हारा कथन सही है, पर दूसरों का कहना भी सही है । दूसरो की सचाई को समझे विना ही अगर उन्हे मिथ्या कहते हो. तो तुम स्वयं मिथ्या भापण करते हो । रुपये के मौ पैसे बताना तो सत्य है परन्तु बीस पजी कहने वाले को मियाभाषी रहने ने तुम स्वय मिथ्याभापी बनते हो । विरोधी को असन्य भापी पाहना तुम्हारी सत्यनिष्ठा नही है। किन्तु उनी सत्यनिष्ठा को भलीभांति समझ लेने मे ही तुम्हारी
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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