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________________ १३१ व्यक्त करने का एक साधन है। इसलिए किसी एक भाषा को आध्यात्मिक वाणी मान लेना निरी मुर्खता है। देश की सभी भापाएँ प्रत्येक दृश्य-अदृश्य समस्या का स्वतन्त्र हल करने की योग्यता रखती हैं। भाषा को उथली और गभीर बनाना उसके जानने वालो पर निर्भर है। जो भाषा जन-साधारण के मन को नही छूती उससे जन-साधारण की कामना करना निरर्थक है। उस समय सस्कृत ही एक ऐसी भाषा थी जो जनता के दिलो को न छूती थी । इसलिए इस भाषा क्रान्ति से जनता में नव चेतना लहरा उठी और राष्ट्र की भाषा मे महावीरश्री का उपदेश मिलने की वजह से आध्यात्मिक प्रश्नो को समझने लगी। इसके वाद भारत की वसुन्धरा पर जितने भी सत पुरुष हुए उन सव ने लोक भाषा को ही अपनाया। स्वय महात्मा बुद्ध ने भगवान महावीर का ही अनुसरण किया- क्योकि उनका उपदेश भी जन-साधारण की भाषा पाली नामक प्राकृत मे हुआ था। महावीरश्री की इस क्रान्तिपूर्ण देन का प्रभाव युग-युगान्तरों को पार कर आज भी हमारे सामने आदर्श की भाँति उपस्थित है। महावीरश्री का दूसरा कदम (अहिंसावाद) उस युग मे देवी-देवताओ के समक्ष किसी आशा विशेप से मूक पशुओ की बलि बहुत ही निर्भयता से दी जाती थी। ससार के वे अनजान-बेजवान प्राणी जो अपनी तकलीफो को मुंह से कहने में असमर्थ है, प्रकृति की तुच्छ घास पर जिनकी जिन्दगी निर्भर है। मानव जाति के अहित की आशा जिनसे स्वप्न मे भी सभव नही और न जिनकी सुख-दुख भरी मूक वाणी को इस रक्त-रजित विराट् कोलाहल मे कोई सुनने वाला नही है ऐसे भोले-भाले प्राणियो की विकल आहुति देखकर महावीरश्री
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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