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________________ १२६ के उद्यान में पधारे तव दुद्धर तपश्चरण द्वारा घातिया कर्मों को नाश कर आपने वैसाख सुदी दशमी के दिन केवलज्ञान प्राप्त कर लिया अर्थात् वे जीवन्मुक्त हो गये । उनका अपूर्णज्ञान पूर्ण ज्ञान के रूप मे परिणत हो गया। इस प्रकार भगवान तीर्थङ्कर वर्द्धमान स्वामी तव सर्वज्ञाता-सर्वदृष्टा वीतराग भगवान महावीर हो गये। महावीरश्री की उपदेश-सभा भ० महावीर स्वामी को केवलज्ञान के प्राप्त होते ही उसी समय इन्द्रो ने आकर इस महान पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के उपलक्ष्य मे विशाल विराट् उपदेश सभा का निर्माण किया। जिस उपदेश सभा का नाम समवशरण था जिसकी विशेषता यह थी कि उसके द्वार विश्व के प्राणिमात्र के लिए खुले हुए थे, आने-जाने की रोक-थाम किसी को भी न थी, न किसी प्रकार का टिकट ही श्रोताओ को खरीदना पडता था। इन्द्र की परेशानी और बुद्धिमानी बारह कोस की विशाल-विराट् उपदेश सभा सभी श्रेणी के प्राणियो से भर चुकने पर भी जव भगवान महावीर का उपदेश प्रारम्भ न हआ तो सभा स्थित हर वर्ग के प्राणियो की हैरानीपरेशानी से सभा का व्यवस्थापक इन्द्र भी दुविधा मे पड गया। बिना पट्टशिष्य (गणधर) के तीर्थकर भगवान की वाणी नही खिरती, इस बात को अवधिज्ञान से जानकर यह भी ज्ञात कर लिया कि अनेक शास्त्रो और पुराणो का वेत्ता वेदपाठी इन्द्रभूति गौतम ऋषि के आये विना भगवान का उपदेश प्रारम्भ नही हो सकता । तव वह वृद्ध विप्र का रूप धारण कर इन्द्रभूति गौतम के समीप जा पहुँचा और जैन धर्म का एक साधारण-सा
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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