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________________ तीर्थकर भगवान महावीर और उनके सन्देश ले० पं० कमलकुमार जैन शास्त्री 'कुमुद' अटल-सत्य "उत्पाद्व्यय ध्रौव्य युक्त सत्" के सिद्धान्तानुसार ससार परिवर्तनशील है, जिसमे विकास और विनाश का चक्र सदासर्वदा अबाधगति से घूमता रहता है। प्रकृति के कण-कण मे -जर-जरे मे यह परिवर्तन व्याप्त है। कौन जानता है कि जो आज सुखो की सुरभित शय्या पर सानन्द सो रहे है, दूसरे ही क्षण उन्हे काँटो का राहगीर बनना पड़े। जगत को प्रकाशित करने वाले भुवन-भास्कर को उदयाचल से उदित होकर अस्ताचल की शरणलेनी ही पडती है । प्रकृति मे ऐसे विविध उदाहरण हमे निरन्तर दिखाई देते है, किन्तु यदि इन सारे परिवर्तनो को दूसरे दृष्टिकोण से देखा जाय तो क्या वस्तुतः वस्तु का नाश होता है ? तो निश्चय ही मानना पडेगा कि वस्तु अथवा द्रव्य का नाश कभी नही होता, अवश्य ही उसकी पर्यायो मे हेर-फेर होती रहती है। जैन धर्म का सत्व अपेक्षाकृत धर्म विशेष का नाम जैन धर्म नही, प्रत्तुत् वह तो सहज स्वरूप, सच्चिदानन्द, शुद्धात्मा की विराट झॉकी है। यह वह तत्त्व है जिसकी की आज के युग मे नही, अतीत युग
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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