SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४ प्रगति की दुल्हन आरती लिए खड़ी है प्रेम का दो सम्बल आशीष की सुहाग विदी दो उसे स्वीकारो मानव हो, मानव की तरह मानव को निहारो वीर की वाणी को अन्तस् मे उतारो श्रद्धा से करो नमन, वन्दन, अर्चन, मिथ्यात्व को मारो आत्मा का गणतंत्र श्री फूलचन्द जी पुष्पेन्दु केन्द्रीभूत हुई सत्ताएँ-तथा कथित ईश्वर में । किया विकेन्द्रीकरण-उन्ही का हर आत्मा के घर मे ।। राज्य नही, गणतत्र नही, अब प्राणिमात्र अनुशासनछाया समवशरण सर्वोदय तीनो लोको भर में ॥१॥ यह स्वतन्त्रता-युद्ध वदल जाए यदि मुक्ति-समर मे। तो फिर सच्चा साम्यवाद भी आ जाए क्षण भर में ।। हो सहयोग स्वावलवन पूर्वक समाज की रचना । यदि समष्टि की हर इकाई स्थित हो आत्म अमर मे ।।२।।
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy