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________________ ५४ वह युग हिसामय बना हुआ, था धर्मनाम वदनाम बहुत । पशुबलि नरमेघो को करना, ही यज्ञो का था काम बहुत ।। धर्मों के ठेकेदार सभी सुरपुर का टिकट वांटते थे। हिंसा के ताण्डव नृत्य सत्य, का मिलकर गला काटते थे। वातावरण वनाया जिसने शांति अहिंसा प्यार का। आनन्दित त्रैलोक्य हमा है ढोग मिटा ससार का।। हो जाए अहिंसायुक्त विश्व, है सन्मति का संदेश यही। तज मोह राग द्वेषादिक को, धारे विराग मय वेप सही। अतएव त्याग गृहस्थावस्था, वे ज्योति पुज के रूप बने। निज शान्ति अहिंसा के सुन्दर तम सत्य शिव अनुप बने । माया मोह न रोक सका था उनको घर परिवार का । आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है ढोग मिटा ससार का ।। यौवन ने पांसे फेके थे, रगीनी के अल्हड़ता के । पर पांव फिसलते भी कैसे, उन महावीर की दृढता के । बंधन की तोड़ी बाधाएँ, छोड़ी सब ही रंगरेलियां। इन्द्रिय निग्रह के निश्चय मे, वे भूल गये अठखेलियां ।। नही मुक्ति श्री अभिलाषी को कार्य प्रणय व्यापार का। आनन्दित त्रैलोक्य हुआ है, ढोग मिटा ससार का ।। १४ आत्म तत्त्व की सत्त्य खोज मे, तीस वसंत व्यतीत हुए। सभी लोक व्यवहार जगत के नश्वर उन्हे प्रतीत हुए। नग्न दिगम्बर हो निर्जन मे, आत्म-साधना रत रहते। वे मौन विवेकी रह करके, उपसर्ग परीषह सव सहते ॥
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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