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________________ महावीर चरित्र। इसलिये नीतिदक्ष वह आपका मानना लगता है ॥ १०३ ।। इस लिये सकुशल वह हमारा स्वामी और आपका पुराना बन्धु आपस दूरी पर रहता है तो भी जिस तरह चंद्रमा समृद्रका आलिंगन करता है उसी तरह प्रेमसे अच्छीतरह आलिंगन करके मेरे द्वारा आपका क्षेम कुशल पूछना है ॥१०॥ तथा हे इंश ! शत्रुओंकी कीर्तिको नष्ट करनेवाला अर्ककिति नामका उसका पुत्र, स्वयंप्रभा नामको 'पुत्री, तया अद्वितीया देवी-रानी आपके पूज्य चरणकमलोंकी अभ्यर्थना करते हैं ॥ १०५ ॥ । एक दिनकी बात है कि कमळताक समान अद्वितीय पुष्पयुक्त पुत्रीको देखकर जलनगटीको मालूम हुआ कि वह कामफलकी. उन्मुख दशाको प्राप्त हो चुकी है। परंतु मंत्रि-नेत्रों के द्वारा देखने-. पर भी उसको उसके समान योग्य वर कहीं भी नहीं दीखा ॥१०६॥ तब निमित्त शास्त्रमें कुशल आप्तकी तरह प्रमाण संमिन्न नामके देवतमें विश्वास किया । और मुख्य मुख्य मंत्रियों के साथ एकांतमें उनके पास जाकर इस तरह पूछा ।। १०७ ॥ “ सुलोचना-सुंदर नेत्रोंवाली • स्वयंप्रमाके योग्य पति हमको कोई भी नहीं दीखता है। इसलिये मत्र आप अपने दिव्य चक्षुओंसे उसको देखिये। मुझे यह कार्य किस तरह करना चाहिये इस विषयमें आप प्रमाण हैं । ॥१०८॥ इस तरह जब राजा अपने कामके बीनको ताकर चुप हो गया तत्र संमिन्न विद्याधरोंके अधीशसे इस तरह बोला ।"हे आयुष्मन् ! अवधिज्ञानी.मुनिरानसे तेरा कर्तव्य मुझे पहले जैसा मालूम हो चुका है. उसको वैसाका वैसा ही कहता हूं । सुन, इसी मरतक्षेत्रमें भरत राजाके वंशमें प्रजापति नामका एक राजा है । वह बड़ा उदार है,
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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