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________________ पांचवां सर्ग [ ६९ 'धवल छत्र और उसके सिवाय दूसरे भी सब तरहके रामः चिन्होंको छोड़कर बाकी अपने २ मनके अभिलषित धनको राज्यके लोगोंने सहसा स्वयं प्राप्त किया ॥ ६० ॥ अतुच्छ शरीरके धारक तीन कालकी बातों के जाननेवाले ज्योतिषीने जो कि सम्पूर्ण दिशाओंमें शिरोभूषण की तरह प्रसिद्धं था राजासे यह स्पष्ट कह दिया कि आपका यह पुत्र अर्ध चक्रको धारण करनेवाला होगा ॥ ६१ ॥ राजाने अपने कुलके योग्य जिनेंद्र देवकी महती पूजाको विधि पूर्वक करके जन्म से दशमें दिन हर्षसे पुत्रका 'त्रिपिष्ट' यह नाम रक्खा ॥ ६२ ॥ शरद ऋतुके आकाशकी शोभाको चुरानेवाले शरीरके द्वारा धीरे २ कठिनताको प्राप्त करते हुए. राजाकी रक्षासे वह इस तरह बढ़ने लगा जिस तरह समुद्र में अमूल्य नीलमणि : बढ़ती है ॥ ६३ ॥ त्रिपिष्टने रामविद्याओंके साथ २ सम्पूर्ण लिया । अहो ! गुणका संग्रह करनेमें प्रयत्न करनेवाला बालक भी जगत् में सत्पुरुष होता है । भावार्थ — गुणोंके होने पर एक बालक मी महापुरुष समझा जाता है। तदनुसार त्रिपिष्टने भी बाल्यावस्था में विद्याओंको और कलाओं को प्राप्त कर लिया इसी लिये वह बालक होने पर महापुरुप समझा जाने लगा । ६४ ॥ - असाधारण बुद्धिके धारक कलाओंको स्वयमेव सीख: - जिस तरह. वसंत ऋतु में आम्र वृक्षके सम्बंधसे पहले ही निकलनेवाले 'बौरकी शोभा होती है और उस बौरको पाकर भम्र वृक्ष अच्छा लगता है, उसी तरह त्रिपिष्टको पाकर यौवन . अत्यंत शोभाको प्राप्त हुआ, और अत्यंत सुभगताको प्राप्त हुआ ॥ १६५॥ यौवनको पाकर त्रिपिष्ट भी क्षत्रियोंके हरण करनेवाले
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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