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________________ ६] महावीर चरित्र । खातेमें कौतूहल-क्रीड़ा करनेवाली मस हंसानियोंको. ठग लेती है ॥ १०॥ नहींके मकानोंक पर चंद्रकांत मणि तथा नीलमणि दोनों लगी हुई हैं। उनमें से नीलमणिके कांतिपटलसे जब रात्रिके समयमें चंद्रमाका आधा भाग नक नाता है तैन उसको युव- . तियां सहभा देखकर यह समझने लगती हैं मानों इसको राहून असा लिया है ॥ ४१ ।। नहां पर घरकी वावड़ियोंकी मंद २ लहरोस । उत्पन्न होनेवाली वायु वहांकी ललनाओंके मुखकमलकी सुगंधिको लेकर निरंतर इस तरह उड़ती रहती है मानों घनाओंमें लगे हुए सुंदर पत्रोंकी .. गणना कर रही हो॥४२॥ जहां पर निर्मल रत्नोंकी बनी हुई भूमिमें : सूर्य मंडलका जो प्रतिबिम्ब पड़ता है उसको कोई मुग्ध-वधू तपाये । हुए सुवर्णका दर्पण समझकर सहसा उठाने लगती है, परंतु उसकी . सखी जब उसको ऐसा करते हुए देखती है तब वह हसने लगती है . ॥४३॥ खाई और कोटके बनानेसे शत्रुपक्षको यह बात सुचित होती है कि हमारा इसको भय है । अतएव सत्पुरुषोंको उनके-वाई और : कोटके बनानेसे भी क्या फायदा है। ऐसा समझ कर ही मान धनको धारण करनेवाले वाहुबलीने इस नगरकी न तो खाई ही बनवाई थी और न कोट बनवाया था ॥ १४ ॥ इस अप्रतिम नृपतिने इस नगरको भूपित कर रक्खा था । वह अपने गुणोंसे सार्थक प्रजापति था.। उसके चरणयुगल, समस्त सूपालोंके राजाओंके मुकुट पर लंगी हुई. मणियोंकी कांति-मंजरीसे जटिल रहते थे ॥ ४५ ॥ जिसके आत्मगुण अत्यंत निर्मल हैं, जो समस्त प्राणिगणकी परिस्थितिसे भाषित रहता है, ऐसे इस महापुरुषों में श्रेष्ठ रानाको पाकर लक्ष्मी भी इस तरह. अत्यंत शोभाको प्राप्त. हुई जिस तरह आकाशमें रहनेवाली
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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