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________________ ३. ] महावीर चरित्र । सुननेके लिये उत्सुक होने लगे, और उसी समय एकदम बाहर निकले ॥६७|| तथा शीघ्र ही अपने २ अमीष्ट वाहनोंपर-सवारियोपर चढ़कर राजद्वारपर जिसके आगे आठ नौ पदाति-संतरी मौजूद थे, आ उपस्थित हुए कि सभी लोग महाराजके निकलनेकी प्रतीक्षा करने लगे ॥६॥ ज्ञानके निधि उन मुनि महारानके दर्शन करने के लिये महाराजकी आज्ञासे, अलंकार और हावभावसे युक्त, अंगरक्षकोंसे 'चारों तरफ घिरा हुआ महारानका अंत:पुर भी रथमें सवार होकर चाहर निकला ॥६९॥ महाराज नंदन भी धनसे याचकोंकेमनोरथोंको -सफल करते हुए, मत्त इस्तीके ऊपर चढ़कर, उस समयके योग्य वेषको धारण कर, चारों तरफसे रानाओंसे वेष्टित होकर, मुनिबदनाक लिये बड़ी विभूतिके साथ वनको निकले। जिस समय महाराज बाहर निकले उस समय मकानोंके पर बैठी हुई नगरकी सुंदर रमणियोंने अपने नेत्र कमलोंसे उनकी पूजा की। भावार्थ-उनको देखकर अपनेको धन्य माना ॥ ७० ॥ इस प्रकार जिसमें मुनिवंदनाके लिये भक्तिपूर्वक गमनका वर्णन किया गया है ऐसे अशगकविकृत वर्धमान चरितका दूसरा सर्ग समाप्त हुआ। तीसरा सर्ग। इन्द्रतुल्य वह राजनंदन नंदनवनके समान अपने उसवनमें पहुंचा। ...जो कि मुनिके निवाससे पवित्र हो गया था ॥१॥ सुगंधित दक्षिणवायुने राजाका श्रम दूर ही से दूर कर दिया, और उस दक्षिण . नायकको प्राप्त कर बंधुकी तरह खूब आलिंगन किया ॥२॥ राजा
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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