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________________ • १४] महावीरः चरित्र । नमस्कार किया। पीछे उनके निकट पहुंच कर अपने करकमलोंक द्वारा मुनिके चरणोंकी पूजा कर स्वयं कृतार्थ हुआ ॥५५॥ संसारकी असारताका निसको ज्ञान हो गया है ऐसा यह राजकुमार उन मुनिराजके निकट वैठकर और दोनो हाथोंको मुकुलित कर अर्थात् नोड़कर यह पूछता हुआ कि हे ईश! इस भयंकर संसार सागरको लांघकर यह जीव सिद्धिको किस तरह प्राप्त करता है ? ॥५६॥ जब राजकुमारने यह प्रश्न किया तब मुनिमहाराज उमके उत्तरमें इस प्रकार बोले कि जब तक " यह मेरा है" ऐमा वृथा अभिनिवेश लगा हुआ है तब तक यह जीव यमरानके मुंखमें हैअर्थात् इस मिथ्या अभिनिवेशके निमित्तसे ही संसार है, किन्तु जिस समय यह अभिनिवेश छूट जाता है उसी समय यह आत्मा अपने निन शुद्धभावको प्राप्तकर मुक्तिको प्राप्त करता है ।। ५७ ॥ मुनिरूप सूर्यसे निकले हुए इस अपूर्व प्रकाशको पाकर राजकुमाररूप पद्माकर सहमा स्वसमयमें विवोधको प्राप्त हो गया। . . भावार्थ-जिस तरह कमल सूर्यके.प्रकाशको पांकर प्रातः कालमें विबोधको प्राप्त हो जाता है-खिल जाता है, उसी तरह यह रानकुमार भी मुनिके उपदेशको पाकर शीघ्र ही निन आत्मस्वरूपकें विषयमें वोधको प्राप्त हो गया। क्योंकि मुनि महाराजका उपदेशरूपीः सूर्य समस्त-वस्तुओंका ज्ञान करानेवाला है, यथार्य है, और मिथ्यात्वरूप अंधकारका भेदन करनेवाला है ।।५८॥ इस राजकुमारने व्रतोंके भूषण धारण किये जिनसे कि यह और भी मनोहर मालूम पड़ने लगा । यह गुणज्ञ, भक्तिसे 'मुनिकी बहुत. देर तक . उपासना करके उठकर उनके निकटं ना आदर पूर्वक नमस्कार कर
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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