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________________ भढारहवाँ सर्ग. 1. [ २६५ कमलोंसे, जिसका उपहार (पूजा) किया गया है ऐसा अनेक प्रकारके रत्नोंका बना हुआ श्रीमंडप था ॥ ३०॥ पहली कटनी पर मणि- मंगल द्रव्यों के समूह के साथ साथ चार धर्मचक्र शोभायमान थे जिनको कि चारो महादिशाओं में यक्षोंने मुकुटोंसे उज्जल हुए मस्तकके द्वारा धारण कर रक्खा था ॥ ३१ ॥ सुवर्णकी बनी हुई और · . मणियों से जटिन दूसरी कटनी पर आठो दिशाओं में अत्यंत निर्मल आठ "वायें थीं जिनमें चक्र, हस्ती, बैल, कमल, वस्त्र, हंस, गरुड और माला के चिन्ह थे। जिनके दंड अनेक प्रकारके रत्नोंसे जड़े हुए थं ॥ ३२ ॥ तीरी. कटनी के ऊपर तीन लोक के चूड़ामणि रत्नके समान . गंधकुटी नामको मनोहर विमान सर्वार्थसिद्धिमें बढ़ी हुई है विमानलीला जिसकी ऐना शोभायमान था जिसके ऊपर भगवानका निवास था ॥ ३३ ॥ तीनों जगत् के लिये प्रतीक्षा करने योग्य तथा जिसकी निर्मन वाणीकी प्रतीक्षा करते हैं ऐसे निबंधनकर्मबंधनों से रहिन जिनेन्द्र भगवान् उप गंधकुट पर विराजमान हुए जिनपर आये हुए भाव जीवोंने सुगंधित वस्तु से किये हुए जलसे छिड़काव कर दिया था ॥ ३४ ॥ उन भगवा- नूके चारो तरफ क्रपसे यतीन्द्र ( गणधर और मुनि) कल्पवासिनी देवी, आर्यिकार्ये, ज्योति देवकी देवियां, व्यंवर देवकी देवियां, भवनवासी देवकी देवियां, भवनवासी देव, व्यंतर देव, C ज्योतिषी देव, कल्पवासी देव, मनुष्य, और मृग (तिर्थंच ) आकर बैठे हुए थे ॥ ३५ ॥ चारो महां दिशाओंके वलयके भेइसे अनल 1 गणोंके भी बारह में थे । अर्थात् चारों दिशाओंके मिलाकर सब बारह कोठे थें. जिनमें उक्त बारह प्रकारके नीवसमूह बैठे हुए थे । " 1
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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