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________________ अढारहवाँ सर्ग। . [ २६३ mimmmmmmmm परे चारों तरफ मयूर, माला, वस्त्र, हंस, केसरी, हस्ती, बैल, गरुड़, कमल, चक्र, इन दश चिन्होंवाली ध्वजायें थीं। इन दश धनाओं में से प्रत्येक एकसौं आठ आठ थीं ॥ १७ ॥ गंगाकी कल्लोलपंगके समान- मालूम पड़नेवाली, जिन्होंने मेव मार्गपर आक्रमण कर लिया है. ऐसी ये ध्वजायें प्रत्येक दिशामें एक हजार अस्सी अस्सी थीं। फैली हुई है कांति जिनकी ऐसी ये ध्वनायें चारो दिशाओंकी मिलाकर सब एक जगह जोड़नसे चार हजार तीनसौ वीस होती हैं ॥ १.८॥ इसके बाद स्कुरायमान है प्रभा जिसकी ऐमा सुवर्णमय प्राकार है जो कि कमल समान वर्णके धारक चार गोपुरोंसे युक्त चार महान् संध्याकालीन घन-मेघोंसे समस्त विद्युम्पमूहको विडंबित करता हुआ जान पड़ता है ।। १९ ।। उन गोपुरों में कलश आदिक प्रसिद्ध मङ्गल वस्तुएं रक्खी हुई थीं। उनके बाद जिनमें मृदंगका मनोहर शब्द होरहा है ऐसी दो दो नाट्यशालायें थीं ॥ २०॥ उनके बाद मार्गके दोनों भागोंमें रखे हुए उन्नन और सुगंधित धूपसे उत्पन्न हुए धूमसे भरे हुए मनोज्ञ सुवर्णपय दो दो धूपघर शोभायमान थे। जो ऐसे जान पडतेथे मानों काले काले मेघण्टलोंसे ढके हुए दो. सुवर्ण पर्वत हों ।। २१ ॥ वहीं पर इन्द्र भी जिनकी , सेवा करता है ऐसे कल्पवृक्षों के वन थे। उनके नाम चार महा. दिशाओं में स्थित सिद्ध है सा.निनका ऐसे सिद्धार्थ वृक्षों से अंकित थे ॥२२।। इसके बाद चार गोपुरोंसे युक्त उत्पल (8).वनवेदिका थी। जो ऐसी जान पड़ती थी मानों अंजन गिरिकी विस्तृत अधित्यकाको ही देवोंने यहां लाकर रख दी है ॥. २.३.। उनपर द्युत-कांतिसे निचित-पूर्ण तथा कल्पवृक्षोंके पुष्प और लाल लाल कोमल पत्तों
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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