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________________ . : .. : : २५६ ] महावीर चरित्र पद्धते हुए भगवान् अपनी चपलताको दूर करने के लिये स्त्रय. उद्युक्त हुए। और शैशवको लांचर क्रमसे उन्होंने नवीन यौवन । लक्ष्मीको प्राप्त किया ॥ ९९ ॥ उनका नवीन कन्नरक समान है वर्ग निसका ऐसा सात हायका मनोज्ञ शरीर, निःस्वंदना (पहीला न आना) आदिक स्वामाविक दश अतिशयोंसे युक्त था ॥ १० ॥ संपारके. हंता, नवीन कमल समान हैं सुकुमार त्राणं युगड जिनके ऐसे कुपार भगवान्ने देवोपनीत भोगोंको भोगते हुए तीस वर्ष बिता दिये॥१२॥ एक दिन भगवान् सन्मति विना किसी निमित्तंक ही विषयोंसे वित होगये । पहायोगी स्थिति निनको विदित है ऐसे : नुनुचः . पुरुष प्रशमके लिये सदा वाहा कारणों को ही नहीं देख कर ॥ १०२॥ स्वामी निर्मल अवधिज्ञानके द्वारा नम अग्ने पूर्व मोन: तथा उद्धन इन्द्रियोंकी विषयोंमें ऐसी अतृप्तिका कि मिस वृत्तको :: प्रमट कर दिया गया है विचार करने लगे॥१०६॥ आकाशमः . विना मंत्रके ही नछुटोंकी विचित्र किरणोंस इन्द्रधनुषत्री शोभाको. बनाती हुई.लोकांतिक देवोंकी संहति (समूह) उस प्रमुको प्रतिरोधित ' करनेके लिय हर्षसे. उसी समय आई ॥ १० ॥ विनयसे कर... • . पल्लवोंको मुकुलिन कर उस मुनुको नमस्कार करके उनके समभा- '. वासे पूर्ण दृष्टिगतके द्वारा प्रमुदित हुए देव समूहन इस तरहके कवन । कहे ॥ १.०५ ॥ हे नाथ ! आपके दीक्षा कल्याणक योग्य यह . कालकाला निकट आ पहुंची है। जान पड़ता है मानों नालीने: - आपसे समागम करनेके उद्देश्य से स्वयं उत्कंठिन होकर अपनी प्रिय' : दूती भेजी है.॥१०६ ॥ साहजिक तीन निर्मल ज्ञानोंसे युक्त .. आप स्वामीको तत्वके एक लेश मात्रको समझने वाले दूसरे लोग
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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