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________________ me n annnnnnnnnnnnnnnornancev २२० ] . महावीर चरित्र। . प्रकार चितवन करना इसको विपाक विचय धर्म्यध्यान कहते हैं। लोकका जो आकार है उसका अप्रमत्त होकर जो निरूपण करना या चिंबना इसको संस्थान विचय नामका धर्यध्यान कहते । ___ ध्यानके द्वारा नष्ट हो गया है मोह जिनका ऐसे मिन भाग-. वान्ने शुक्लध्यानके चार भेद बताये हैं। जिनमें से आदिके दो भेद 'पूर्ववित्-श्रुतकेवलीके होते हैं और अंतके दो भेद केवलीके होते हैं. : ॥ १४९ ॥ पूर्ण ज्ञानके धारक जिन भगवान्ने. पहला शुक्लध्यान पृथत्त्ववितर्क नामका बताया है जो कि त्रियोगीके होता है। और . दूसरा शुक्लध्यान एकत्ववितर्क नामका बताया है जो कि एक योग::: वालेके ही होता है ॥ १५० ॥ सूक्ष्म क्रियाओंमें प्रतिपादन के कारण तीसरे शुक्लध्यानका नाम ज्ञानके द्वारा देख लिया है . समस्त : जगतको जिन्होंने ऐसे सर्वज्ञ भगवान् सुक्ष्म क्रिया प्रतिपाति बतातें : हैं। यह ध्यान काययोगबालेके ही होता है ॥१५१॥ हे नरेन्द्र ! । समस्त दृष्टा भगवान्ने चौथे शुक्लध्यानका नाम व्युपरत क्रिया '. •त्ति बताया है। दूसरोंको दुर्लभ यह ध्यान योग रहितके ही होता .. ; है ॥ १५२ ॥ हे कुशाग्रबुद्धे ! आदिके दोनों शुक्लध्यान वितर्क . और वीचारसे युक्त हैं; तथा दोनों ही का आश्रय एक श्रुतकेवली ही . है। तीन लोकके लिये प्रदीपके समान जिन भगवान्ने दूसरे ध्यानको चीचार-रहितं बताया है ॥ १५३ ॥ प्रशन और अद्वितीय सुखको जिन्होंने प्राप्त कर लिया है, तथा आचरण है प्रधान जिनका ऐसे : ज्ञानीपुरुष वितर्क शब्दका अर्थ श्रुत बताते हैं, और वीचार शब्दका : अर्थ, अर्थ, व्यंजन, और योग, इनकी संक्रांति पल्टन ऐसा बताते
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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