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________________ ..१८०] महावीर चरित्र । . . गौओंके खुरोंसे उठी हुई गधेके वालों के समान धूम्रवर्णवाली धूलिसे आकाश रुंध गया-व्याप्त हो गया। मानों वह सबका सब आकाश चक्रवाक युगलको दाह उत्पन्न करनेवाली वामदेवरूप अग्निसे उठते हुए सांद्र निविड़-घने धूमके पटलोंसे ही आछन्न हो गया हो ॥ ४६ ॥ इसी समय सांद्र विनिन्द्र बेलाकी अधखिली कलियोंकी शीतल गन्धसे युक्त सायंकालकी वायु भ्रमरोंके साथ साथ मानिनियों को भी अंधा बनाती हुई मंदमंद वहने लगी।। ४७ ।। क्रीड़ाके द्वारा शीघ्र ही कोकिनके सराग वचन कानके निकट आ • कर प्राप्त हुए। आम्रग्ल्लाकी तरह उसने भी मानिनियों के मुखकी शोभा विचित्र ही बढ़ाई ।। ४८ ।। जो अंधकार दिनमें दिननाथसूर्यके भयसे पर्वतोंकी बड़ी बड़ी गुफाओं छिा गया था वहीं अन्धकार सूर्यके जाते ही बढ़ने लगा । जो मलिन होता है। वह रन्ध्रको पाकर बलवान् हो ही जाता है ।। ४९ ॥ अंधकारके सबन पटलोंसे व्याप्त हुआ नगत् भी विल्कुल काला पड़ ग. । विदलित की है अंजनकी प्रभाको निपने ऐसे अंधकारके साथ हुआ योगसम्बन्ध-श्री-शोभाके लिये थोड़े ही हो सकता है ।॥ ५० ॥.जो प्रकाशयुक्त हैं उनका अविषण, निकी गति कष्टसे भी नहीं. मालूम हो सकती है, जिसने सीमा-मर्यादाको छोड़ दिया. है ऐसे तथा सरको अपने समान बनानेवाले मलिनात्मा. अंधकार-समूहने. दुर्जनकी वृत्तिको धारण किया ।। ५१ ॥ रत्न दीपकों के समूहने गाढ़ अन्धकारको महलोंसे दूर भगा दिया। मालूम हुआ मान! . सूर्यके अंधकारको नष्ट करनेके लिये अपने करांकुरका. दंड ही भेजा, . है ॥.५२ ॥ छिलिगा है रूपको जिन्होंने तथा रक्त (आशक्त.
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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