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________________ नमः श्रीवर्द्धमानाय श्रीमहावीरचरित्र | · पहला सर्ग । WIDELCint जो आस्तिक हैं- जो स्वर्ग नरक आदि परलोकको और उनके कारणभूत कर्मेको तथा कर्मोसे रहित आत्माकी अनंत ज्ञानादि विशिष्ट अवस्थाको मानते हैं, वे अपने कार्य में विघ्न आनेके अन्तरङ्ग कारणभूत अन्तरायकर्मकी अनुभाग शक्ति (विन्न उपस्थित करनेवाली फलदान शक्ति) को क्षीण करनेके लिये कार्यके प्रारंमें ही मंगलाचरण करते हैं । यद्यपि यह मङ्गलाचरण मन और कार्यके द्वारा भी हो सकता है; तथापि आगे होनेवाले शिष्ट पुरुष भी इसका आचरण करें- आगे मी मङ्गलाचरणकी अविच्छिन्न परिपाटी चली जाय इस आकांक्षाले श्री अशग कवि भी महावीर चरित्र रचनेके प्रारम्भ में शिष्टाचारका पालन करते हुए, जगज्जीवके लिये हितमार्ग - मोक्षमार्गका उपदेश देनेवाले सर्वज्ञ वीतराग अन्तिम तीर्थकर श्री महावीर स्वामीके गुणोंका स्मरण कर कृतज्ञता प्रकट करते हैं । I
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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