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________________ . . तेरहवां सर्ग। [१८१ पुरुष दुसरे; पक्षमें खून.) के रागसें विवश हो गया है चित्त जिनका ऐसी कुलटायें चारों तरफ हर्षसे अभिप्रेत स्थानोंको गई जो ऐसी मालूम पड़ती थीं मानों पिशचिनी हो ।।.५३ ॥ पूर्व दिशा ऐसी. मालूम पड़ने लगी मानों दीनभावोंको धारण करनेवाली विध. वाली हो क्योंकि निकलते हुए चंद्रमाके किरणांकुरोंके अंशोंसे उसका मुख पोला पड़ गया था; और फैले हुए अंधकारने केशोंका रूप धारण कर लिया था ॥ १४ ॥ चंद्रमाके कोमल पादों (किरणों; दूसरे पक्षमें चरणों ) को धरण करता हुआ उद्या उदयगिरिः मी. शोभाकों प्राप्त हुआ । अत्यंत निर्मल व्यक्तिमें किया हुआ प्रेम उन्न व्यक्तिकी शोमा ही बढ़ाता है ॥२५॥ : उदयाचलके भीतर छिपे हुए चंद्रमाके किरणजालने अंधकारको पहलेसे शीघ्र ही नष्ट कर दिया। अपने समयमें उद्या हुभा व्यक्ति जो प्रतिपक्षको जीतने की इच्छा रखता है उमसे आगे जानेवाला - लवान होता है ।।.५६ ।। पहले तो उदयाचलसे चंद्रमाकी एक विद्वम-मूंगाके समान कांतिकी धारक कलाका उदय हुमा। इसक बाद आंधे चंद्रमांका और उसके बाद पूर्ण त्रिम्बका उदय हुआ। ठीक ही है-जगत्में वृद्धि करसे. नहीं होती है ? ।। ५७ ॥ नवीन उठा हुआ. हिमंकर-चंद्र अपनी प्रिया. यामिनी-रात्रिको अंधकार रूप मीलने पड़ी हुई देखकर मानों :कोपपूर्ण बुद्धि से ही एकदम • लाल पड़ गया ॥ १८ ॥ जो रागी पुरुप होता है उससे यह नियम है कि कोई मी अपिमत कार्य सिद्ध नहीं होता है। मालूम पड़ता हैं मानों यह समझ करके ही चन्द्रमाने निविड़ अंधकारको नष्ट करनेके लिये रागको छोड़ दिया.॥ ५९ ।। अत्यंत सांद्र चंदन के समान
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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