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________________ १६२ ] महावीर चरित्र। ... .." कि यहां पर तुम्हारी स्त्रियां हैं। ६ ॥ किनारोंपर लगे हुए मुक्ता पाषाणोंकी ग्धि दीप्तिरूप ज्योत्स्नासे कपल समूह ति रहता :है । अतएव दिनमें भी सदा ही कपलोंको विकाशसंपत्ति कभी कम : नहीं होती । भावार्थ-वे कमळ यद्यपि चंद्रविकांशी हैं तो भी उनकी शोभा दिनमें भी नष्ट नहीं होतो । क्योंकि सरोवरों के किनारोंपर : जो पाषाण लगे हैं उनकी कांति उनपर पड़ा करती है जिससे वे दिन में मी खिले हुए ही मालूम पड़ते हैं। अतएव उनकी शोमा... कमी न्ष्ट नहीं होती ।। ७॥ कुंइपृप्पके समान धरल अपनी .. किरणों से अधिशरी रात्रिको चारो तरफसे हठाता हुआ ऐमा :: मालूम पड़ता है मानों कृष्णपक्षकी रात्रियों के ऊपर अपूर्व ज्योत्स्नाचांदनीको ही फैला रहा है अर्थात् मानों कृष्णासकी गत्रियोंको शुक्ल की रात्रि बना रहा है । ८। उस पर्वतकी दक्षिण श्रेणी में.. हेमपुर नामका . एक नगर है । वह दूसरे सब नगरों में प्रधान और · मन्दिरोंसे भूषित है । नगरवा " हेमपुर : यह नाम अन्वय है-जैसा नाम है वैसा ही उसमें गुण पाया जाता है। क्योंकि :: नगरके कोट महल और अट्टालिकायें आदि सत्र सुवर्णक बने हुए थे। गाएं। इन नगर में स्वाभाविक निमलता गुणके धारणकरनेवालों में...: 'रल पाषाण ही ऐसे थे कि नितमें अत्यंत खरत्व (कठोरता) पाया ‘जाता था। कलावानों (गाने बजाने आदिकी कला, दूसरे पक्षम चंद्रमाक्री कल-अंशं) में या पक्षेत्र लों (जाति, कुल, समाज, देश: आदिका पक्ष; दूपरे पक्षमें शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष) में केवलं चंद्रमा हो . ऐसा था जोकि अंतरङ्ग में मलीनता धारण करता था। वहीं पर त्याग (दान) करनेवाले सदा विरूप (दुरूर श्लेषसे दूंमरा अर्थ
SR No.010407
Book TitleMahavira Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKhubchand Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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